रहा देखता जमाना
किससे करूँ शिकायत? और किससे दोस्ताना?
कोई साथ चल ना पाया, रहा देखता ज़माना।
रही आँख छलकीं -छलकीं, आहें थीं सूफ़ियाना,
वो जिगर में आग भरके, होंठों से मुस्कुराना ।
वाह खुदा! तेरी खुदाई, मुझको ये दिन दिखाया...
पहचान अब हुई है, अपना है क्या बेगाना ।
कहीं रूठ के है बैठी, मेरी किस्मतों की कश्ती...
मेरे पास है तेरा दम, सब लुट गया खजाना ।
मेरी जिन्दगी की कीमत, कोई मुझसे आज पूछे,
रही एक बंद मुट्ठी, और रेत सा ठिकाना ।
बहला ले या बुला ले, बदनाम "चन्द्रिका" को
जो जहाँ में जब भी चाहा, वही छिन गया खिलौना ।
- शुभांगिनी कुमारी चन्द्रिका