Warning: session_start(): open(/tmp/sess_3eedfaf6e36e864ca721d8632151b8c5, O_RDWR) failed: No such file or directory (2) in /home/bharatdarshanco/public_html/article_details.php on line 2

Warning: session_start(): Failed to read session data: files (path: /tmp) in /home/bharatdarshanco/public_html/article_details.php on line 2
 तुम्हें याद है ?
भारत की सारी प्रांतीय भाषाओं का दर्जा समान है। - रविशंकर शुक्ल।

तुम्हें याद है ? (काव्य)

Print this

Author: यतेन्द्र कुमार

तुम्हें याद है ? नाम लिखा था तुमने मेरा नदी किनारे,
एक साँझ अपनी उँगली से भीगे हुए रेत के ऊपर :
जिसको थोड़ी देर बाद ही मिटा दिया लहरों ने आकर,
देख जिसे, जाने क्यों उस क्षण, भर आये यों नयन तुम्हारे ?

इतनी क्यों गमगीन हुई तुम ? जिसे नष्ट कर गई हिलोरें,
वह तो क्षणिक : किन्तु जिसका प्रतिरूप लिखा था मेरे मन पर,
नहीं सहज वह पायेगा मर, काल - तरंगों से टकरा कर।
फिर जाने क्या सोच तुम्हारी मुस्काई नयनों की कोरें ?

सच, उस सुख की सुधियों को हो, रूप दे रहा हैं कविता का :
वह भीगी मुसकान, नेह भीगा विश्वास तुम्हारा मुझ पर,
करता रहा सहज प्रेरित, मैं तब से लिखता रहा निरन्तर :
अब मुसकायें नयन तुम्हारे, भय न करें वे नश्वरता का !

मेरा नाम, तुम्हारी छाया-विश्वासों की जीत हमारी !
आज समय की नदी किनारे, हार रहीं लो, लहर बिचारी !

- यतेन्द्र कुमार
[ छाया के स्वर, आत्माराम एंड संस, १९६०]

Back

 
Post Comment
 
 
 
 
 

सब्स्क्रिप्शन

सर्वेक्षण

भारत-दर्शन का नया रूप-रंग आपको कैसा लगा?

अच्छा लगा
अच्छा नही लगा
पता नहीं
आप किस देश से हैं?

यहाँ क्लिक करके परिणाम देखें

इस अंक में

 

इस अंक की समग्र सामग्री पढ़ें

 

 

सम्पर्क करें

आपका नाम
ई-मेल
संदेश