हिंदी भारतीय संस्कृति की आत्मा है। - कमलापति त्रिपाठी।

प्रदीप मिश्र की चार कवितायें (काव्य)

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Author: प्रदीप मिश्र

बुरे दिनों के कलैण्डरों में


जिस तरह से
मृत्यु के गर्भ में होता है जीवन
नास्तिक के हृदय में रहती है आस्था


नमक में होती है मिठास
भोजन में होती है भूख
नफरत में होता है प्यार


रेगिस्तान में होती हैं नदियाँ
हिमालय में होता है सागर


उसी तरह से
अच्छे दिनों की तारीख़ें भी होतीं हैं
बुरे दिनों के कलैण्डरों में।


#


उम्मीद


आज फिर टरका दिया सेठ ने
पिछले दो महीने से करा रहा है बेगार
उसे उम्मीद है
पगार की


हर तारीख़ पर
पड़ जाती अगली तारीख़
जज-वकील और प्रतिवादी
सबके सब मिले हुए हैं
उसे उम्मीद है
जीत जाएगा मुक़दमा


तीन सालों से सूखा पड़ रहा है
फिर भी किसानों को उम्मीद है
बरसात होगी
चुका देंगे कर्ज़


आदमियों से ज्यादा लाठियाँ हैं
मुद्दों से ज्यादा घोटाले
जीवन से ज्यादा मृत्यु के उद्घोष
फिर भी वोट डाल रहा है वह
उसे उम्मीद है,
आयेंगे अच्छे दिन भी


उम्मीद की इस परम्परा को
हमारे समय की शुभकामनाऐँ
उनको सबसे ज़्यादा
जो उम्मीद की इस बुझती हुई लौ को
अपने हथेलियों में सहेजे हुए हैं।


#


मुझे शब्द चाहिए


हँसना चाहता हूँ
इतनी जोर की हँसी चाहिए
जिसकी बाढ़ में बह जाए
मन की सारी कुण्ठाएं


रोना चाहता हूँ
इतनी करुणा चाहिए कि
उसकी नमी से
खेत में बदल जाए सारा मरूस्थल


चिल्लाना चाहता हूँ
इतनी तीव्रता चाहिए जिससे
सामने खड़ी चट्टान में
पड़ जाए दरार


बात करना चाहता हूँ
ऐसे शब्द चाहिए
जो बहें हमारी रगों में
जैसे बहती रहती है नदी
जो भीनें हमारे फेफड़ों में
जैसे भीनती रहती है वायु


मुझे शब्द चाहिए
नदी और वायु जैसे शब्द ।


#


एक जनवरी की आधी रात को


एक ने
जूठन फेंकने से पहले
केक के बचे हुए टुकड़े को
सम्भालकर रख लिया किनारे


दूसरा जो दारू के गिलास धो रहा था
खगांल का पहला पानी अलग बोतल में
इकट्ठा कर रहा था


तीसरे ने
नववर्ष की पार्टी की तैयारी करते समय
कुछ मोमबत्तिायाँ और पटाख़े
अपने ज़ेब के हवाले कर लिए थे


तीनों ने एक जनवरी की आधी रात को


पटाख़े इस तरह फोड़ें
जैसे लोगों ने कल जो मनाया
वह झूठ था
आज है असली नववर्ष


दारू के धोवन से भरी बोतलों का
ढक्कन यूँ खोला
जैसे शेम्पेन की बोतलों के ओपेनर
उनकी ज़ेबों में ही रहते हैं


जूठे केक के टुकड़े खाते हुए
एक दूसरे को दी
नववर्ष की शुभकामनाएँ


पीढिय़ों से वे सारे त्यौहार
इसी तरह मनाते आ रहे हैं
कलैण्डर और पंचाँग की तारीख़ों को
चुनौती देते हुए।


#


- प्रदीप मिश्र
ई-मेल: mishra508@gmail.com

 

रचनाकार परमाणु ऊर्जा विभाग के राजा रामान्ना प्रगत प्रौद्योगिकी केन्द्र, इन्दौर में वैज्ञानिक अधिकारी के पद पर कार्यरत हैं।

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