जब हम अपना जीवन, जननी हिंदी, मातृभाषा हिंदी के लिये समर्पण कर दे तब हम किसी के प्रेमी कहे जा सकते हैं। - सेठ गोविंददास।

सच (कथा-कहानी)

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Author: अश्विन गुप्ता

माँ स्कूल में टीचर जी कहती है कि बच्चे जैसा देखते हैं, वे वैसा ही सीखते है। क्या यह सच है, माँ?" बेटे ने खाना खाते हुए माँ से प्रश्न किया।

"हाँ बेटा, ये सच है।"

बेटे को रूआँसा देख, माँ ने कारण पूछा तो बेटा फूट पड़ा, "माँ, तुम पापा को समझाना कि वो दादी पर चिल्लाए नहीं। उनकी इज्जत करें क्योंकि मैं तुमसे ऐसा व्यवहार नहीं करना चाहता|"

बेटे को खाना खिलाते-खिलाते स्वयं भी खाना खाती माँ के गले में जैसे निवाला जा अटका।

- अश्विन गुप्ता
ashwingupta2012@yahoo.com

 

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