हिंदी भारतीय संस्कृति की आत्मा है। - कमलापति त्रिपाठी।

और मानवता सिसक उठी (कथा-कहानी)

Print this

Author: रोहित कुमार 'हैप्पी'

राज्य में आंदोलन चल रहा था।

'अच्छा मौका है। यह पड़ोसी बहुत तंग करता है। आज रात इसे सबक सिखाते हैं।' एक ने सोचा।

'ये स्साला, मोटर बाइक की बहुत फौर मारता है। आज तो इसकी बाइक गई!' एक छात्र मन में कुछ निश्चय कर रहा था।

'सामने वाले की दूकान बहुत चलती है...आज जला दो। अपना कम्पीटिशन ख़त्म!' दुकानदार ने नफ़े की तरकीब निकाल ली थी।

'देखो, कुछ दुकानें, कुछ मकान, कुछ बसें फूक डालो। सिर्फ विरोधियों की ही नहीं अपनी पार्टी की भी जलाना ताकि सब एकदम वास्तविक लगे।' नेताजी पार्टी कार्यकर्ताओं को समझा रहे थे।

फिर चोर-उचक्के, लूटेरे कहाँ पीछे रहते! आंदोलन के नाम पर हर कोई अपनी रोटियां सेंकने में लग गया था। आंदोलन दंगे में बदल चुका था।

मानवता तार-तार होकर कहीं दूर बैठी सिसक उठी।

- रोहित कुमार 'हैप्पी'

 

Back

 
Post Comment
 
 
 
 
 

सब्स्क्रिप्शन

सर्वेक्षण

भारत-दर्शन का नया रूप-रंग आपको कैसा लगा?

अच्छा लगा
अच्छा नही लगा
पता नहीं
आप किस देश से हैं?

यहाँ क्लिक करके परिणाम देखें

इस अंक में

 

इस अंक की समग्र सामग्री पढ़ें

 

 

सम्पर्क करें

आपका नाम
ई-मेल
संदेश