भाषा विचार की पोशाक है। - डॉ. जानसन।

डॉ सुधेश की पाँच कविताएं (काव्य)

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Author: डॉ सुधेश

सफलता सोपान


जो बड़े हुशियार
काइयाँ दुनियादार
अक्सर सफल
दूसरे सिरों पर पाँव रख
उच्च सिंहासन पहुँचते
चाहे एक दिन सिंहासन लुढ़कता जब
गधे के सींग से ग़ायब ।
पर जो नेक सज्जन सरल
गुणों की खान
ज़िन्दगी की दौड़ में
कछवा चाल से पहुँचना चाहते
एवरेस्ट की चोटी
खरगोश दुनिया ने वहाँ गाड़े
पहले से ही अपने तम्बू
पास में सफलतारोहण के सभी सामान
वक्त के तूफ़ान में उड़ा सब तामझाम
धीरे धीरे हिमालय की उत्तुंग चोटी पर
कच्छप शेरपा ने
गाड़ी पताका ।

- सुधेश

 


अख्बार का पन्ना


दैनिक अख्बार में
इस उस का नाम छपा
वह नामी हो गया देशदुनिया में
नेता का नाम रोज छपता है फ़ोटो सहित
पर अख्बार उसी दिन
बासी होकर
डम्प होता कबाड़ी के लिए ।
एक दिन
दुर्दिन का मारा
अख्बार का पन्ना
सड़क में पड़ा फड़फड़ाता
आने जाने वालों के जूते पड़े
इस के उस के नेता के
नामों पर फ़ोटो पर
भीनी पुरवैया ने
उसे पटका नाली के नरक में
तो पीता है गन्दा पानी
सुहानी बरसात
उसे बहा ले गई
गुमनामी के नदी नाले में ।
अख्बार के पन्ने की
करुण कथा दुर्दशा व्यथा के लिए
चाहियें अनेक महाकाव्यात्मक उपन्यास ।
मानव की नियति
क्या उस से अलग ?

- सुधेश



तितलियाँ

बच्चे तितलियाँ पकड़ते हैं
या पकड़ने की कोशिश करते हैं
पर पकड़ नहीं पाते
क्यों
क्योंकि तितलियाँ पकड़ना
बच्चों का खेल नहीं
बिगड़े शहज़ादों अमीरजादों
खूसट अधेड़ जेबवालों का काम है ।
तितलियाँ भी जानती हैं
कहाँ मधु है
बैठती हैं उन डालों पर
जहाँ ढका छिपा मधु हो
पत्तों की आड में
उसे चख कर
वे फिर उड़ती हैं
ताज़े मधु की खोज में ।
इस लिए तितलियाँ
कहीं नहीं बैठतीं
बस उड़ती रहती हैं ।

-सुधेश



भाग्य और नियति


मैं भाग्यवादी नहीं
पर मेरे साथ
जो अघटित घटा
या घट रहा है या घटेगा
है मेरी नियति ।
भाग्य तो धोखा है
हसीन ख़्वाब सा
जिसे देखते देखते
कई बचपन बुढ़ा गये
फिर भी अन्धी आँखों में है
आशा की ज्योति ।
घटित और अघटित के बीच
जीवन बीत रहा
घड़ी के पैन्डुलम सा ।

- सुधेश



शब्द


कुछ शब्द
जैसे प्यार करुणा क्षमा
शब्द नहीं
हैं मन्त्र
मन्त्र नहीं
हैं ऋचाएँ
जिन्हें आँखें बोलती हैं
वाणी प्राण को छूती
ये शब्द पेड़ की छाया
थके हारे की शरण ।

- सुधेश
314 सरल अपार्टमैन्ट्स, द्वारिका, सैक्टर 10
दिल्ली 110075
फ़ोन 9350974120
     

[ डॉ सुधेश दिल्ली के जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय से हिन्दी के प्रोफ़ेसर पद से सेवानिवृत्त हैं। ]

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