जब हम अपना जीवन, जननी हिंदी, मातृभाषा हिंदी के लिये समर्पण कर दे तब हम किसी के प्रेमी कहे जा सकते हैं। - सेठ गोविंददास।

हमें गाँधी-नेहरू तो याद रहे (काव्य)

Print this

Author: भैरो सिंह

जाने कितने झूले थे फाँसी पर, कितनों ने गोली खाई थी।।
पर झूठ देश से बोला कोरा, कि चरखे से आज़ादी आई थी।।

चरखा हरदम खामोश रहा, और अंत देश को बांट दिया।
लाखों बेघर,लाखों मर गए, जब गाँधी ने बंदरबाँट किया।।

जिन्ना के हिस्से पाक गया, नेहरू को हिन्दुस्तान मिला।
जो जान लूटा गए भारत पर, उन्हें कुछ न सम्मान मिला।।

जो देश के लिए जीये,मरे और फाँसी के फंदे पर झूल गए।
हमें गाँधी-नेहरू तो याद रहे, पर अमर पुरोधा हम भूल गए।।

- भैरो सिंह
ई-मेल: bherusinghanu8999@gmail.com

 

 

Back

 
Post Comment
 
 
 
 
 

सब्स्क्रिप्शन

सर्वेक्षण

भारत-दर्शन का नया रूप-रंग आपको कैसा लगा?

अच्छा लगा
अच्छा नही लगा
पता नहीं
आप किस देश से हैं?

यहाँ क्लिक करके परिणाम देखें

इस अंक में

 

इस अंक की समग्र सामग्री पढ़ें

 

 

सम्पर्क करें

आपका नाम
ई-मेल
संदेश