हिंदी चिरकाल से ऐसी भाषा रही है जिसने मात्र विदेशी होने के कारण किसी शब्द का बहिष्कार नहीं किया। - राजेंद्रप्रसाद।

दुर्योधन सा सिंहासन है मिला (काव्य)

Print this

Author: प्रियांशु शेखर

मेरे अधिकार तो छीन लिए तुमने
मेरे जैसा हुनर कहाँ से लाओगे?
बोलो साहस इतना तुम, भला कहाँ से पाओगे!
दुर्योधन सा सिंहासन है मिला
युद्धिष्ठर से पूजनीय तुम कैसे कहलाओगे?

हमारे अंदर ज्ञान का लौ आलोकित है
अंधेरो से न हम घबराएंगे।
फ़िक्र तुम अपनी करो ऐ जाने जां
खैरात की चांदनी में कब तक नहाओगे?
अमावस की काली रातों में
तुम औंधे मुह गिर जाओगे।

मेरे अधिकार तो छीन लिए तुमने
मेरे जैसा हुनर कहाँ से लाओगे?

- प्रियांशु शेखर
ई-मेल: priyanshu24shekhar98@gmail.com

Back

 
Post Comment
 
 
 
 
 

सब्स्क्रिप्शन

सर्वेक्षण

भारत-दर्शन का नया रूप-रंग आपको कैसा लगा?

अच्छा लगा
अच्छा नही लगा
पता नहीं
आप किस देश से हैं?

यहाँ क्लिक करके परिणाम देखें

इस अंक में

 

इस अंक की समग्र सामग्री पढ़ें

 

 

सम्पर्क करें

आपका नाम
ई-मेल
संदेश