जब हम अपना जीवन, जननी हिंदी, मातृभाषा हिंदी के लिये समर्पण कर दे तब हम किसी के प्रेमी कहे जा सकते हैं। - सेठ गोविंददास।

शहीद पर लिखो (काव्य)

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Author: ज्ञानवती सक्सेना

तुम ग़ज़ल लिखो कि गीत प्रीतिकर लिखो
एक पंक्ति तो कभी शहीद पर लिखो ।

लौट नही पाये, लिखो गीत उन पर
देह प्राण वार गये राष्ट्र धुन पर
नाव कर गये किनार आप बह गये
आखिरी प्रणाम या सलाम कह गये

धूप में टिको कि कहीं छांह में टिको
किंतु किसी टूट गई बांह में टिको ।

थे जहां जहां भी अंधियारे रास्ते

खुद को जलाया रोशनी के वास्ते

नीड़ को जलाया है चमन के लिये
बाप को रुलाया है वतन के लिये


काँप रहे वृद्ध की थकान पर रुको
दीप नहीं जला उस मकान पर रुको ।

ध्वज लहराया जै जै बोल कर गये
मातृ भूमि हेतु उम्र तोल कर गये
अर्थी को कांधा, नहीं मिला कफ़न
आरती सजाते हुए हो गये हवन

चाहे जिस पृष्ठ के सुलेख हो दिखो
किंतु माँ के नाम पर एक ही दिखो।

प्रीति राधिका की वे श्याम थे कभी
मेंहदी रचाया हुआ नाम थे कभी
प्रश्न भरी ज़िंदगी का हल थे कभी
वे भी किसी प्यार की ग़ज़ल थे कभी

नेह ने कहा था कि अनुरक्ति पर बिको
देह ने कहा था कि देश भक्ति पर बिको ।

- ज्ञानवती सक्सेना


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