जिस देश को अपनी भाषा और अपने साहित्य के गौरव का अनुभव नहीं है, वह उन्नत नहीं हो सकता। - देशरत्न डॉ. राजेन्द्रप्रसाद।

दादी | बाल-कविता (बाल-साहित्य )

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Author: आभा सक्सेना

दादी तुम कितनी अच्छी हो,
पापा की प्यारी मम्मी हो ।

मम्मी जब गुस्सा होती हैं,
खूब मुझे डाँटा करती हैं।
आ जाती हो तुरन्त वहां पर,
मम्मी डांटती मुझे जहाँ पर।
मेरी सिफारिश कर देती हो़,
दादी तुम कितनी अच्छी हो।

रात होतेे ही सर्दियों में
घुस जाती हो रजाई में
हमें वहीं बुला लेती हो
रज़ाई की गर्माई में
साथ हमें भी सुला लेती हो
दादी तुम कितनी अच्छी हो।।

गालों में पड़ते जो गड्डे
मुझे बहुत भले लगते हैं
चाँदी जैसे बाल तुम्हारे
मुझे बहुत अच्छे लगते हैं
परियों की रानी लगती हो
दादी तुम कितनी अच्छी हो।।

तुम मेरी अच्छी दादी हो
लगती तुम सीधी सादी हो
सुना सुना कर ढेर कहानी
मेरा मन बहला देती हो
दादी तुम कितनी अच्छी हो।।

अपने बटुये से निकाल झट
पाँच रुपैया दे देती हो
टॉफी और बिस्किट खाने की
तुरंत इज़ाज़त दे देती हो
तुम भी हम संग खा लेती हो
दादी तुम कितनी अच्छी हो

पुपला कर तुम बोला करतीं
बातों में रस घोला करतीं
नहीं चलातीं तुम मनमानी
करतीं वही जो हमने ठानी
बच्चों संग बच्चा बनती हो
दादी तुम कितनी अच्छी हो।।

- आभा सक्सेना

   ई-मेल : abhasaxena08@yahoo.com

 

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