कुछ सुन रहा था
लगा कुछ खनक रहा था
पर विश्वास था
कि आडे आ रहा था
जुनून था
कि अपने होने का अहसास करा रहा था
आंखे देख नही पा रही थी
कि धुंध हटने क नाम नही थी
इन्ही सब के बीच थी
जिन्दगी मेरी
जो मुझ से कुछ कह रही थी
- अरविंद सैन
कुछ सुन रहा था | कविता (काव्य) |
कुछ सुन रहा था
लगा कुछ खनक रहा था
पर विश्वास था
कि आडे आ रहा था
जुनून था
कि अपने होने का अहसास करा रहा था
आंखे देख नही पा रही थी
कि धुंध हटने क नाम नही थी
इन्ही सब के बीच थी
जिन्दगी मेरी
जो मुझ से कुछ कह रही थी
- अरविंद सैन