जब हम अपना जीवन, जननी हिंदी, मातृभाषा हिंदी के लिये समर्पण कर दे तब हम किसी के प्रेमी कहे जा सकते हैं। - सेठ गोविंददास।

आपसे सच कहूँ मौसम हूँ | ग़ज़ल (काव्य)

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Author: सूबे सिंह सुजान

आपसे सच कहूँ मौसम हूँ, बदल जाऊँगा
आज मैं बर्फ हूँ कल आग में जल जाऊँगा

सर्दियों में मैं समन्दर की तरफ भागूँगा
गर्मियों में मैं पहाडों पे निकल जाऊँगा

आपका प्यार बरसने लगा मुझ पर लेकिन,
आप बदलो या न बदलो मैं बदल जाऊँगा

लोग पर्वत मुझे कहते हैं मगर मेरी सुनो,
तुम मुझे काटते हो तो मैं भी ढल जाऊँगा

एक क़ाग़ज हूँ मुझे फिर से भिगोया जाये
ठोकरें खा के महब्बत में सँभल जाऊँगा

- सूबे सिंह सुजान
subesujan21@gmail.com
मोबाईल न. 09416334841

 

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