जब हम अपना जीवन, जननी हिंदी, मातृभाषा हिंदी के लिये समर्पण कर दे तब हम किसी के प्रेमी कहे जा सकते हैं। - सेठ गोविंददास।

जाने क्यों कोई शिकायत नहीं आती | ग़ज़ल (काव्य)

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Author: डॉ. मनु प्रताप सिंह

जाने क्यों कोई शिकायत नहीं आती
नजर कहीं भी अब वो सूरत नहीं आती

गये जब से छोड़कर वो जहाँ मेरा
तब से मेरे साथ किस्मत नहीं आती

टूटा हूँ कितना मैं यह कह नहीं सकता
करनी किसी से अब बगावत नहीं आती

सहा अबतलक मैंने यारो जिसे हरदम
उनके हुनर कि वो नजागत नहीं आती

वो बिकते रहे हम देखते रहे उनको
मुझको लगानी भी कीमत नहीं आती

मैंने दी यही दुआ वो सलामत रहें
उनको करनी भी इवादत नहीं आती

प्यार बस 'मनु' जिस्मानी रह गया बनकर
उनको निभानी भी मुहब्बत नहीं आती

- डॉ. मनु प्रताप सिंह

 

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