जब हम अपना जीवन, जननी हिंदी, मातृभाषा हिंदी के लिये समर्पण कर दे तब हम किसी के प्रेमी कहे जा सकते हैं। - सेठ गोविंददास।

पागल कौन ? (कथा-कहानी)

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Author: दिलीप लोकरे

नींद मेरी आँखों से कोसों दूर है । सोने की लाख कोशिश करने के बाद भी आँखें बंद करते ही शाम की घटना आँखों के सामने तैरने लगती है । हम सभी उसे पिछले कई दिनों से जानते है । ऑफ़िस के आसपास ही घूमती रहती है। किसी को कोई नुकसान नहीं पहुँचाती, लेकिन उसके हुलिए की वजह से लोग उससे दूर रहना ही पसंद करते हैं । उम्र यही कोई 18-19 वर्ष । बाल मैले ओर उलझे रहते है लेकिन चेहरा सुन्दर है - ख़ासकर उसकी दोनों आँखें । मै जानता हूँ कि मेरे कई साथी उसकी देहयष्टि पर मोहित है लेकिन शिक्षा के माध्यम से ओढा हुआ सभ्यता का आवरण उन्हें अपने खोल से बाहर नहीं आने देता । हालाँकि मानसिक तौर पर सभी उसे भोग रहे है । इस बलात्कार के लिए अभी कोई कानून बना भी नहीं, जो उन्हें रोके ।

घटना आज शाम की है । मैं घर आने के लिए बस स्टॉप पर खड़ा था। पास ही वह हमेशा की तरह कचरे में कुछ बीन रही थी । तभी न जाने कहाँ से युवाओं का एक ग्रुप, जो लगभग पांच लोगों का था, वहाँ आ धमका । कुछ देर इधर-उधर की आपस में गपशप के बाद उनमे से एक की नजर उस पर पड़ गई और शुरू हो गया छेड़खानी का दौर । जवानी की हवस गरीब-अमीर, खूबसूरत-बदसूरत गंदे या साफ़सुथरे में फर्क करना नहीं जानती | जुबानी शरारत से होते हुए कुछ देर बाद ये हरकतें शारीरिक छेड़खानी तक पहुँच गई। सभ्यता के लबादे में लिपटा मैं उनके पचड़े में नहीं पड़ा । कमजोर हो कर अपने आप को शरीफ कहलाना, डरपोक कहलाने से अच्छा होता है। कुछ देर तक तो उसने इन हरकतों को सहन किया लेकिन फिर अचानक खूंखार हो कर, एक बड़ा सा पत्थर हाथों में उठाये वह इन लड़कों की तरफ बढ़ी और सीधा उसके सर पर दे मारा जो उससे छेड़खानी कर रहा था । खून का फव्वारा उस लड़के के सर से फूट पड़ा । पहले तो वह सभी हक्केबक्के रह गए , फिर अचानक वह लड़का जिसका सर फूटा था, मां बहन की गालियों के साथ आक्रामक तरीके से उस लड़की की और लपका । घटना से घबराए उसके साथियों ने जैसे तैसे उसे पकड़ा और बोले, "जाने दे यार । पागल है साली"..................और वहां से चल दिए ।

और मैं तब से लगातार यही सोच रहा हूँ कि ... पागल कौन है ?

-दिलीप लोकरे
diliplokreindore@gmail.com

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Posted By B.KARUNAKAR   on Friday, 18-Jan-2019-14:08
Verynice
 
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