जब हम अपना जीवन, जननी हिंदी, मातृभाषा हिंदी के लिये समर्पण कर दे तब हम किसी के प्रेमी कहे जा सकते हैं। - सेठ गोविंददास।

हमारा गणतंत्र (काव्य)

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Author: रोहित कुमार 'हैप्पी'

आज प्रजा की करता यहाँ पूछ कहाँ तंत्र है?
राजनीति धर्महीन मात्र एक षड्यंत्र है!

ग़ैरों की नहीं अपनों की पर ग़ुलामी जारी है,
कहने को भारत हुआ कब का स्वतंत्र है!

काट डालो जीभ उसकी जो भी हो बोलता,
शांति का मूल बचा बस यही यहां मंत्र है!

आदमी को मार देना हो गया आसां अब
खोज डाला विज्ञान ने एक नया यंत्र है!

- रोहित कुमार 'हैप्पी'

 

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