जब हम अपना जीवन, जननी हिंदी, मातृभाषा हिंदी के लिये समर्पण कर दे तब हम किसी के प्रेमी कहे जा सकते हैं। - सेठ गोविंददास।

खुद ही बनाया | ग़ज़ल (काव्य)

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Author: रोहित कुमार 'हैप्पी'

खुद ही बनाया औ' बिगाड़ा तकदीरों को
मैं मानता नहीं हाथ की लकीरों को।

महलों में रहें या कभी हों बेघर
फर्क पडता है कब फकीरों को।

कर्म अपने का फल मियाँ भोगो
कोसते क्यों हो भला तकदीरों को।

दुख गरीबों को ही बस नहीं होते
खुशियाँ मिलती नहीं सब अमीरों को।

- रोहित कुमार ‘हैप्पी'

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