जब हम अपना जीवन, जननी हिंदी, मातृभाषा हिंदी के लिये समर्पण कर दे तब हम किसी के प्रेमी कहे जा सकते हैं। - सेठ गोविंददास।

ज्ञान-धारा | बोधकथा (कथा-कहानी)

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Author: भारत-दर्शन संकलन

एक बार भगवान बुद्ध से उनके शिष्य आनंद ने पूछा- ‘भगवन्! जब आप प्रवचन देते हैं तो सुनने वाले नीचे बैठते हैं और आप ऊंचे आसन पर बैठते हैं, ऐसा क्यों?’

बुद्ध बोले- ‘ये बताओ कि पानी झरने के ऊपर खड़े होकर पिया जाता है या नीचे जाकर?’

आनंद ने उत्तर दिया- ‘झरने का पानी ऊंचाई से गिरता है।

अतः उसके नीचे जाकर ही पानी पिया जा सकता है।’

भगवान बुद्ध ने कहा-- ‘तो फिर यदि प्यासे को संतुष्ट करना है तो झरने को ऊंचाई से ही बहना होगा न?’

आनंद ने ‘हाँ' में उत्तर दिया।’

यह सुनकर बुद्ध बोले-- ‘आनंद! ठीक इसी तरह यदि तुम्हें किसी से कुछ पाना है तो स्वयं को नीचे लाकर ही प्राप्त कर सकते हो और तुम्हें देने के लिए दाता को भी ऊपर खड़ा होना होगा। यदि तुम समर्पण के लिए तैयार हो तो तुम एक ऐसे सागर में बदल जाओगे, जो ज्ञान की सभी धाराओं को अपने में समेट लेता है।’

[भारत-दर्शन संकलन]

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