जब हम अपना जीवन, जननी हिंदी, मातृभाषा हिंदी के लिये समर्पण कर दे तब हम किसी के प्रेमी कहे जा सकते हैं। - सेठ गोविंददास।

दुआ (काव्य)

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Author: मौलाना मुहम्मद हुसैन 'आज़ाद'

आलम है अपने बिस्तरे - राहत पै ख़ाब में,
'आज़ाद' सर झुकाए ख़ुदा की जनाब में।
फैलाए हाथ सूरते- उम्मीदवार है,
औ' करता सच्चे दिल से दुआ बार बार है॥

मुझको तो मुल्क से है, न है माल से ग़रज़,
रखता नहीं ज़माने के जंजाल से गरज।
या रब ! ये इलतिजा है, करम तू अगर करे,
वह बात दे ज़बाँ को जो दिल पर असर करे॥

-मौलाना मुहम्मद हुसैन 'आज़ाद'

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