आलम है अपने बिस्तरे - राहत पै ख़ाब में,
'आज़ाद' सर झुकाए ख़ुदा की जनाब में।
फैलाए हाथ सूरते- उम्मीदवार है,
औ' करता सच्चे दिल से दुआ बार बार है॥
मुझको तो मुल्क से है, न है माल से ग़रज़,
रखता नहीं ज़माने के जंजाल से गरज।
या रब ! ये इलतिजा है, करम तू अगर करे,
वह बात दे ज़बाँ को जो दिल पर असर करे॥
-मौलाना मुहम्मद हुसैन 'आज़ाद'