जब हम अपना जीवन, जननी हिंदी, मातृभाषा हिंदी के लिये समर्पण कर दे तब हम किसी के प्रेमी कहे जा सकते हैं। - सेठ गोविंददास।

हमारा देश (काव्य)

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Author: कवि इन्द्र बहादुर खरे

सिर पर शोभित मुकुट हिमालय
उर पर गंगा-धारा है,
सागर पद धोते हैं जिसके
ऐसा देश हमारा है। 

राम कृष्ण ने जहां जन्म ले
जिसका नाम बढ़ाया है,
सीता ने नारी–जीवन का
जग को पाठ पढ़ाया है। 

कितने ही वीरों ने हँसकर
जिसको शीश चढ़ाया है,
राणा और शिवाजी ने भी
अपना रुधिर बहाया है।

विक्रम और अशोक जहाँ पर
हिन्दू - ध्वजा उड़ाते थे,
कितने ही पर-राष्ट्र खुशी से
अपना शीश झुकाते थे।

मीरा और बुध्द ने जिसमें
उज्ज्वल ज्ञान जगाया है,
तुलसी और सूर ने जिसको
भक्ति - मार्ग दिखलाया है।

ताजमहल अब भी मुगलों की
गौरव – गाथा गाता है,
जिसे देखने आकुल मन ले
सब जग दौड़ा आता है।

जहाँ जन्म ले गाँधीजी ने
जग में फैलाया है नाम ,
ऐसी मातृभूमि को बलि हो
करता हूँ मैं कोटि प्रणाम। 

- कवि इन्द्र बहादुर खरे
    [1939, मथुरा]


प्रेषक : डॉ मलय रंजन खरे
ई-मेल:  apoorv_raj@yahoo.com

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