जब हम अपना जीवन, जननी हिंदी, मातृभाषा हिंदी के लिये समर्पण कर दे तब हम किसी के प्रेमी कहे जा सकते हैं। - सेठ गोविंददास।

ये मत पूछो... (काव्य)

Print this

Author: प्रदीप चौबे

ये मत पूछो कब होगा
धीरे-धीरे सब होगा

रोज़ खबर आ जाती है
अब होगा बस अब होगा

सरकारी है काम तेरा
होना होगा तब होगा

कब सोचा था दंगों का
मज़हब एक सबब होगा

मकतल तक ले जाए जो
वो कैसा मज़हब होगा

जिसका मज़हब कोई नहीं
वो इनसान अजब होगा

मेरा यह सब कहने का
कोई तो मतलब होगा

बेशक आज नहीं लेकिन
इक दिन गौर तलब होगा

-प्रदीप चौबे

Back

 
Post Comment
 
 
 
 
 

सब्स्क्रिप्शन

सर्वेक्षण

भारत-दर्शन का नया रूप-रंग आपको कैसा लगा?

अच्छा लगा
अच्छा नही लगा
पता नहीं
आप किस देश से हैं?

यहाँ क्लिक करके परिणाम देखें

इस अंक में

 

इस अंक की समग्र सामग्री पढ़ें

 

 

सम्पर्क करें

आपका नाम
ई-मेल
संदेश