नदी के किनारे ढलती शाम के साये में
स्कूटर पर उनका कुछ सहम कर बैठना।
कभी कानों से सटकर रुकने को कहना
कभी पीठ पर उंगलियों से कुछ लिखना।
हवाओं के रुख पर वो जुल्फों का उड़ना
जूड़े में कसना औ फिर उनका खुलना।
सब्जियों के खेतों पर मन का मचलना
कभी मुझे टोकना कभी खुद सम्हलना।
बहुत याद आता है साथ उनका चलना
हाथ कन्धे पे रखकर चढ़ना - उतरना।
डॉ. अनुराग कुमार मिश्र
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