जब हम अपना जीवन, जननी हिंदी, मातृभाषा हिंदी के लिये समर्पण कर दे तब हम किसी के प्रेमी कहे जा सकते हैं। - सेठ गोविंददास।

मैं खुद में हूँ पूरी  (काव्य)

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Author: सोनाली सिंह

जननी हूँ
जीवन भी मैं,
जज्बातों पर
मेरा जोर नहीं। 
सशक्त हूँ,
व साकार
भी हूँ मैं
नारी हूँ,
कमजोर नहीं। 
दरपन हूँ व
अक्स भी मैं,
झुका सके मुझे
इतना कोई सशक्त नहीं
स्वाभिमानी हूँ, व
आत्म निर्भर भी मैं।
टूट के बिखरूं अब
वो वक्त नहीं,
नहीं समझना
आधी-अधूरी
नहीं अधूरी मैं
खुद में हूँ पूरी। 
साथ चलना हो
तो हाथ बढ़ाना,
पीछे हटना
मुझे मंजूर नहीं। 

- सोनाली सिंह
  पटना, बिहार, भारत

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