जब हम अपना जीवन, जननी हिंदी, मातृभाषा हिंदी के लिये समर्पण कर दे तब हम किसी के प्रेमी कहे जा सकते हैं। - सेठ गोविंददास।

गिरिधरराय की कुण्डलियाँ (काव्य)

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Author: गिरिधर कविराय

साईं समय न चूकिये, यथाशक्ति सन्मान।
को जानै को आइहै, तेरी पौंरि प्रमान॥
तेरी पौंरि प्रमान, समय असमय तकि आवै।
ताको तू मन खोलि, अंकभरि हृदय लगावै॥
कह गिरिधर कबिराय सबै यामें सुधि आई।
शीतल जल फल-फूल समय जनि चूकौ सांई॥

बिना बिचारे जो करै, सो पाछे पछिताय।
काम बिगारे आपनो, जग में होत हँसाय॥
जग में होत हँसाय, चित्त में चैन न पावै।
खान पान सन्मान, राग रंग मनहिं न भावै॥
कह गिरिधर कबिराय दुःख कछु टरत न टारे।
खटकत है जिय माहिं कियो जो बिना बिचारे॥

दौलत पाइ न कीजिये सपने में अभिमान।
चञ्चल जल दिन चारिको ठाउँ न रहत निदान॥
ठाउँ न रहत निदान जियत जग में यश लीजै।
मीठे बचन सुनाय विनय सबही की कीजै॥
कह गिरिधर कविराय अरे यह सब घट तौलत।
पाहुन निशिदिन चारि रहत सबही के दौलत॥

-गिरिधर कविराय

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