बनारसवाद साहित्य का
वह वाद है जो सबसे अलग हैं,
सबसे मिला हुआ है।
कुछ लोगों का कहना है,
बनारस में साहित्यकार नहीं हैं,
उनका कथन ठीक है।
यहाँ साहित्यकार नहीं
संत होते हैं,
और जो संत नहीं होते
वह मस्त होते हैं--
वाद से परे,
विवाद से दूर
जाह्नवी को माता
विश्वनाथ को बाबा समझकर
जीवन यापन करते हैं।
वह ताव पर लिखते हैं
बनाव से भागते हैं।
इसी परंपरा का
लघु संस्करण
मैं भी हूं।
- बेढब बनारसी