जब हम अपना जीवन, जननी हिंदी, मातृभाषा हिंदी के लिये समर्पण कर दे तब हम किसी के प्रेमी कहे जा सकते हैं। - सेठ गोविंददास।

शानदार | क्षणिका (काव्य)

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Author: शैलेन्द्र चौहान

खाना शानदार
रहना शानदार
भाषण शानदार
श्रोता शानदार
बात इतनी थी
तुम थे तमाशबीन
वे थे दुकानदार

-शैलेन्द्र चौहान

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