जब हम अपना जीवन, जननी हिंदी, मातृभाषा हिंदी के लिये समर्पण कर दे तब हम किसी के प्रेमी कहे जा सकते हैं। - सेठ गोविंददास।

टूटी माला बिखरे मनके | गीत (काव्य)

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Author: मनोहरलाल ‘रत्नम

टूटी माला बिखरे मनके, झुलस गये सब सपने।
रिश्ते नाते हुए पराये, जो कल तक थे अपने ॥

अंगुली पकड़ कर पांव चलाया, घर के अंगनारे में,
यौवन लेकर सम्मुख आया, वह अब बटवारे में।
उठा नाम बटवारे का तो, सब कुछ लगा है बटने ॥
टूटी माला बिखरे मनके, झुलस गये सब सपने।
रिश्ते नाते हुए पराये, जो कल तक थे अपने॥

रिश्तों की अब बूढ़ी आंखें, देख-देख पथरायीं,
आशाओं के महल की सांसें, चलने से घबरायीं ।
कल का नन्हा हाथ गाल पर, लगा तमाचा कसने ॥
टूटी माला बिखरे मनके, झुलस गये सब सपने।
रिश्ते नाते हुए पराये, जो कल तक थे अपने ॥

दीवारों पर चिपके रिश्ते, रिश्तों पर दीवारें,
घर आंगन सब हुए पराये, किसको आज पुकारें।
रिश्तों की मैली-सी चादर, चली सरक कर हटने ॥
टूटी माला बिखरे मनके, झुलस गये सब सपने।
रिश्ते नाते हुए पराये, जो कल तक थे अपने॥

हर घर में बस यही समस्या, चौखट पार खड़ी है,
जिसको छू कर देखा 'रत्नम् ' विपदा वहीं बड़ी है।
हर रिश्तों में पड़ी दरारें लगा कलेजा फटने ॥
टूटी माला बिखरे मनके, झुलस गये सब सपने।
रिश्ते नाते हुए पराये, जो कल तक थे अपने ॥

-मनोहरलाल ‘रत्नम

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