जब हम अपना जीवन, जननी हिंदी, मातृभाषा हिंदी के लिये समर्पण कर दे तब हम किसी के प्रेमी कहे जा सकते हैं। - सेठ गोविंददास।

संबंधी (कथा-कहानी)

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Author: डॉ प्रेमनारायण टंडन

एक धनी के मकान में आग लग गयी। घरवाले किसी तरह जरूरी सामान के साथ अपने प्राण लेकर जब बाहर आये तब पता चला कि एक बालक अभी घर में ही रह गया है। तब तक आग ने भयंकर रूप धारण कर लिया था इसलिए किसी को सूझ न पड़ा कि बच्चे को कैसे बचाया जाए।

तभी बहन ने रोते हुए कहा-- "जो कोई मेरे भाई को बचा लाएगा, उसे एक हजार रुपया इनाम दिया जाएगा।"

जब भीड़ में से कोई न हिला तब बड़े भाई ने रोते-रोते कहा--- "जो कोई मेरे भाई को बचा लायगा, उसे पाँच हजार इनाम दिया जाएगा।"

इस पर भी जब भीड़ में कोई हलचल न हुई तो बहुत घबराकर पिता ने कहा-- "जो कोई मेरे बेटे को बचा लायगा, उसे दस हजार रुपया इनाम दिया जाएगा।"

इसी बीच एक बुढ़िया आग की लपटों को चीर कर मकान के मीतर जा चुकी थी। पिता की बात खत्म होते होते वह बालक को लिये दरवाजे से बाहर आयी। आग की लपटों में वह इस तरह झुलस गयीं थी कि द्वार के बाहर आते ही चक्कर खाकर गिर पड़ी। बालक उसकी पीठ पर बंधा होने से सुरक्षित रहा।

भीड़ के लोगों में से कुछ ने बुढ़िया के साहस की प्रशंसा की और कुछ ने कहा-- "इनाम के लालच में बुढ़िया ने अपने प्राण दे दिये।"

तभी पता चला कि वह उस बालक की धाय थी जिसने माता के मरने पर उसे कुछ दिन दूध पिलाया था।

-डॉ प्रेमनारायण टंडन

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