जब हम अपना जीवन, जननी हिंदी, मातृभाषा हिंदी के लिये समर्पण कर दे तब हम किसी के प्रेमी कहे जा सकते हैं। - सेठ गोविंददास।

पाँच हाइकु (काव्य)

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Author: डॉ. भगवतशरण अग्रवाल

महँगा सौदा
बचपन खोकर
मिली जवानी।

धरा सुदरी
श्रावण में पहने
हरी चूनरी।

घृणा, प्रेम में,
अवरोध बनी क्या?
कोई भी भाषा।

कोई भी रात
इतनी काली नहीं--
सूर्य न देखे।

उम्र के साथ
एक एक टूटते
जीवन भ्रम।

- डॉ. भगवतशरण अग्रवाल
[सबरस हाइकु काव्य, साहित्य भारती प्रकाशन, अहमदाबाद]

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