जब हम अपना जीवन, जननी हिंदी, मातृभाषा हिंदी के लिये समर्पण कर दे तब हम किसी के प्रेमी कहे जा सकते हैं। - सेठ गोविंददास।

बंदी पंछी | गीत (काव्य)

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Author: सैयद मुतलवी फ़रीदाबादी


कब यह खुलेगी काली खिड़की, कब पछी उड़ जाएंगे
ऐसा मौसम कब आएगा उड़ उड़ कर जब गाएंगे !
इस पिंजरे की हर तीली सपने में आन जलाती है,
ध्यान से कब यह निकलेगी कब इससे रिहाई पाएंगे !

बरस रहे हैं आज तो हम पर ओले भी ओ' पत्थर भी,
छितिज में हैं कुछ छितरे बादल उमड़ के वे भी आयेंगे !
आयेंगे औ' छा जायेंगे आकाश के कोने कोने में,
पवन चलेगी ऐसी पंछी सब पिंजरे खुल जाएंगे !

-सैयद मुतलवी फ़रीदाबादी

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