हाँ! यह कैसी लाचारी
भेड़ है जनता बेचारी
सहना इसकी आदत है--
मुड़ती वहाँ, जहाँ जाती!
अनुशासन में पलती है,
झुंड बनाकर चलती है,
गड्ढा है या खाई है—
इसको नजर नहीं आती!
आखिर यह कब चेतेगी,
और लीक यह टूटेगी,
राजभवन-कुरसी-सत्ता
सब इसकी ही है थाती !
-अश्वघोष
[सर्वश्रेष्ठ हास्य-व्यंग्य गीत]