जब हम अपना जीवन, जननी हिंदी, मातृभाषा हिंदी के लिये समर्पण कर दे तब हम किसी के प्रेमी कहे जा सकते हैं। - सेठ गोविंददास।

कैसी लाचारी (काव्य)

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Author: अश्वघोष

हाँ! यह कैसी लाचारी
भेड़ है जनता बेचारी
सहना इसकी आदत है--
मुड़ती वहाँ, जहाँ जाती!

अनुशासन में पलती है,
झुंड बनाकर चलती है,
गड्ढा है या खाई है—
इसको नजर नहीं आती!

आखिर यह कब चेतेगी,
और लीक यह टूटेगी,
राजभवन-कुरसी-सत्ता
सब इसकी ही है थाती !

-अश्वघोष
[सर्वश्रेष्ठ हास्य-व्यंग्य गीत]

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