जब हम अपना जीवन, जननी हिंदी, मातृभाषा हिंदी के लिये समर्पण कर दे तब हम किसी के प्रेमी कहे जा सकते हैं। - सेठ गोविंददास।

ज़ख्म को भरने का दस्तूर होना चाहिए (काव्य)

Print this

Author: ज़फ़रुद्दीन ज़फ़र

इंसानियत को बांटना दूर होना चाहिए
वसुधैव-कुटुंबकम् मशहूर होना चाहिए

फैली हुई बुराई तो मिट जाएगी लेकिन
विचार सभी का कोहिनूर होना चाहिए

कांटा मुझे चुभे या चुभे किसी और को
ज़ख्म को भरने का दस्तूर होना चाहिए

बात कोई भी हो बात तो बात है लेकिन
तुम्हें बात कहने का शऊर होना चाहिए

यक़ीन के बंधन तो कई बार बिखर गए
नफ़रतों का घमंड भी चूर होना चाहिए

चला ही गया है अगर इंसाफ़ के मन्दिर
फैसला आदमी को मंज़ूर होना चाहिए

झूठ से परहेज़ ही काफी नहीं 'ज़फ़र'
सच्चाई की खुशबू का नूर होना चाहिए

-ज़फ़रुद्दीन ज़फ़र
 एफ-413,
 कड़कड़डूमा कोर्ट,
 दिल्ली -32
 ई-मेल : zzafar08@gmail.com

Back

 
Post Comment
 
 
 
 
 

सब्स्क्रिप्शन

सर्वेक्षण

भारत-दर्शन का नया रूप-रंग आपको कैसा लगा?

अच्छा लगा
अच्छा नही लगा
पता नहीं
आप किस देश से हैं?

यहाँ क्लिक करके परिणाम देखें

इस अंक में

 

इस अंक की समग्र सामग्री पढ़ें

 

 

सम्पर्क करें

आपका नाम
ई-मेल
संदेश