जब हम अपना जीवन, जननी हिंदी, मातृभाषा हिंदी के लिये समर्पण कर दे तब हम किसी के प्रेमी कहे जा सकते हैं। - सेठ गोविंददास।

हक़ | क्षणिका (काव्य)

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Author: सुफला सेठी

रोशनी बेचने का हक़ ,
सबको नहीं मिला करता;
सूरज का मैं ,
नूर-ए-चश्म हो गया हूँ।

- सुफला सेठी 
  ईमेल: suflasethi@gmail.com

 नूर-ए-चश्म = आँख की रोशनी, लड़का, सुपुत्र, प्यारा बेटा, फ़र्ज़ंद, प्यारी बेटी

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