हिंदी भाषा को भारतीय जनता तथा संपूर्ण मानवता के लिये बहुत बड़ा उत्तरदायित्व सँभालना है। - सुनीतिकुमार चाटुर्ज्या।

सुनहरा अखरोट | अफ्रीकी लोक-कथा (कथा-कहानी)

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Author: हंसराज रहबर

बहुत दिनों की बात है। किसी गाँव में एक लोहार और उसकी पत्नी रहते थे। उन्हें धन-दौलत किसी चीज की कमी नहीं थी। दुख सिर्फ यह था कि इनके कोई सन्तान नहीं थी। एक रात लोहार की पत्नी ने सपना देखा। उसे एक घने जंगल में एक पेड़ दिखाई दिया। जिसकी टहनी फल के बोझ से झुकी हुई थी। इस टहनी पर एक बड़ा-सा सुनहरा अखरोट लटक रहा था।

जब वह यह सपना बराबर तीन रात तक देखती रही, तब उसने अपने पति से कहा, ‘‘तुम जंगल में जाओ और मुझे वह सुनहरा अखरोट ला दो।’’

लोहार को इस बात का विश्वास तो नहीं आया, पर वह चल पड़ा। चलते-चलते आखिर वह एक घने जंगल के बीच में पहुँच गया। वहाँ उसे वही पेड़ नजर आया, जिसकी टहनी झुकी हुई थी और उस पर सुनहारा अखरोट लटक रहा था।

ज्यों ही उसने हाथ बढ़ाकर टहनी से अखरोट तोड़ा, पास से एक गिलहरी क्रोध में भरकर बोल उठी, ‘‘तुमने यह अखरोट तोड़ने का साहस कैसे किया?’’

वह गिलहरी कोई साधारण गिलहरी नहीं थी। उसके बाल बर्फ की तरह सफेद थे और गले में सुनहरे अखरोटों की एक माला थी।

‘‘जंगल की महारानी, आप मुझसे नाराज मत हों - लोहार ने विनम्रता से कहा, मुझे मालूम नहीं था कि इसे तोड़ने की मनाही है। मैं इसे अपनी बीमार बीवी को दूँगा।’’

गिलहरी बोली, ‘‘तुमने सच बात कह दी, इसलिए मैं यह अखरोट तुम्हें उपहार देती हूँ। अपनी पत्नी से कहना कि वह इसका गूदा खाकर खोल रख छोड़े। तुम्हारे घर दो जुड़वाँ लड़के होंगे। जब उनकी उम्र बीस साल हो जाए तो उन्हें आधा-आधा खोल दे देना। वे दोनों जंगल में चले आएँ और जहाँ पेड़ पर हुदहुद की ठक-ठक सुनें वहाँ ये खोल धरती पर फेंक दें। तब उन दोनों के भाग्य का निर्णय हो जाएगा।’’

सफेद गिलहरी ने जैसा कहा था, वैसा ही हुआ। लोहार-पत्नी के जुड़वाँ लड़के हुए। लेकिन दोनों रंग रूप में एक-दूसरे से काफी भिन्न थे। एक लड़के की आँखें गहरी स्याह थीं जबकि दूसरे की भूरी थीं। धीरे-धीरे दोनों जवान हो गये। दोनों सुन्दर और सुडौल थे। लेकिन काली आँखोंवाला लड़का स्वभाव से क्रूर और निष्ठुर था और भूरी आँखों वाला सहृदय और दयालु।

जब वे बीस साल के हुए तो पिता ने उन्हें अखरोट का आधा-आधा खोल दिया। लड़के जंगल में चले गये। ज्यों ही हुदहुद के ‘ठक-ठक’ की आवाज कान में पड़ी, उन्होंने वे खोल धरती पर फेंक दिये और दूसरे ही क्षण अपने आपको एक कलकल करते स्रोत के किनारे खड़ा पाया। सफेद गिलहरी उनके सामने एक टहनी पर बैठी थी। नीचे एक पेड़ के ठूँठ पर दो अखरोट पड़े थे। उनमें से एक सादा और खुरदरा था और दूसरा खूब चमक रहा था।

गिलहरी बोली, ‘‘अपनी मर्जी का एक-एक उठा लो। पर उतावले मत बनो, क्योंकि इससे तुम्हारी किस्मत का फैसला होगा।’’

काली आँखोंवाले लड़के से न रहा गया। वह तुरन्त झपटा और उसने चमकता हुआ अखरोट उठा लिया। खुरदरा अखरोट दूसरे भाई के हाथ लगा।

सफेद गिलहरी ने कहा, ‘‘अब अपना-अपना अखरोट तोड़ो। जो कुछ निकले, उसी पर सन्तोष करो, क्योंकि इसमें किसी तीसरे का दखल नहीं है।’’

वह पूँछ हिलाती हुई जंगल में गायब हो गयी।

काली आँखोंवाले भाई ने अपना अखरोट पहले तोड़ा। उसके सामने काले रंग का एक कोतल घोड़ा खड़ा था। घोड़े की काठी से एक वर्दी बँधी थी, जिस पर सुनहरी फीता लगा हुआ था। इसके अलावा एक तलवार थी, जिसका दस्ता सोने का था।

‘‘अहा! इस तलवार के बल पर तो मैं दुनिया भर का धन इकट्ठा कर लूँगा।’’ उसने उल्लास में भरकर बड़े गर्व से कहा।

इसके बाद भूरी आँखोंवाले लड़के ने अपना अखरोट तोड़ा। उसके सामने भार ढोने-वाला साधारण टट्टू खड़ा था। उसकी पीठ पर एक थैला था, जिसमें मन-डेढ़-मन बीज थे।

दोनों भाई अपने-अपने घोड़े पर सवार होकर अलग-अलग दिशा में चल पड़े।

भूरी आँखोंवाला एक दिन जंगल में और दो दिन मैदानों में भटकता रहा। तीसरे दिन शाम को वह एक गाँव में पहुँचा और रात बिताने का कोई ठिकाना ढूँढ़ने लगा। जब वह एक झोंपड़ी के सामने जाकर रुका तो एक किसान ने बाहर आकर उसका स्वागत किया और विनम्रतापूर्वक कहा, ‘‘आप खुशी से हमारे पास ठहर सकते हैं। हमें खेद है कि हम आपकी अधिक सेवा नहीं कर पाएँगे। एक डाकू हमारी फसलें लूट ले जाता है।’’

‘‘आप उसे पकड़ते क्यों नहीं?’’ भूरी आँखोंवाले लड़के ने पूछा।

किसान ने उत्तर दिया, ‘‘हम कैसे पकड़ें? वह आदमी थोड़ा है। वह तो गर्म हवा है जो फ़सलें झुलसा देती है।’’

वह अपना बीज का थैला सिरहाने रखकर किसान के आँगन में लेट गया। उसे यों महसूस हुआ कि बीज हिल रहे हैं।

‘‘हमें बो दो, हमें बो दो।’’ थैले में से आवाज आयी - ‘‘हम ऐसी घनी दीवार बना देंगे, जो गर्म हवा को खेतों में आने से रोक देगी।

अगले दिन लड़के ने किसान से कहा, ‘‘क्या मैं आपके साथ रह सकता हूँ? शायद हम दोनों गर्म हवा को रोकने में सफल हो जाएँ।’’

किसान यह प्रस्ताव सुनकर बहुत खुश हुआ और वे दोनों एक साथ रहने लगे। अब भूरी आँखोंवाले नौजवान को वहाँ रहते साल-दो साल नहीं, बीसियों साल बीत गये। यहाँ तक कि उसके सिर के बाल सफेद हो गये। उसने जो बीज बोये थे, वे जैतून के लम्बे-लम्बे घने पेड़ बन चुके थे। गर्म हवा उनसे टकराकर लौट जाती थी और खेतों में खूब गेहूँ उगता था। वे हर साल बढ़िया-से-बढ़िया फसल काटते थे। गेहूँ की पकी हुई बालियाँ देखकर भूरी आँखोंवाला व्यक्ति उल्लास से खिल उठता और अपने भाई को याद करके सोचता - यही मेरा सोना है। जाने उसका क्या हाल होगा?

एक बार वह किसी दूसरे गाँव में से गुजर रहा था। उसने देखा कि एक नन्हा लड़का अखरोट के खोल से खेल रहा था। खोल आधा सोने का और आधा लोहे का था।

‘‘तुम्हें यह खोल कहाँ से मिला?’’ भूरी आँखोंवाले ने लड़के से पूछा।

‘‘मेरे पिता लड़ाई के मैदान से इसे लाये थे।’’ लड़के ने उत्तर दिया - ‘‘किसी सेनापति ने हमारे देश पर हमला किया। घमासान युद्ध हुआ। सेनापति और उसके सिपाही मारे गये। जब लोग सेनापति को दफनाने को ले चले तो उसकी वर्दी में से यह खोल धरती पर गिर पड़ा था।’’

‘‘उस सेनापति का नाम क्या था?’’ भूरी आँखोंवाले ने पूछा।

‘‘यह मुझे मालूम नहीं। खुद पिताजी उसका नाम भूल गये थे, इसलिए उन्होंने मुझे नहीं बताया।’’ -लड़के ने उत्तर दिया और मुँह बनाकर कहा, ‘‘हमें उसका नाम जानने की जरूरत ही क्या है? जो शत्रु बनकर किसी का देश हड़पना चाहे, उसका नाम कौन याद रखेगा?’’

काली आँखोंवाले सेनापति भाई का यह अन्त हुआ। लेकिन सदियाँ बीत गयीं, इस भूरी आँखोंवाले भाई को लोग अब भी याद करते हैं और उसका नाम बड़े आदर और प्यार से लेते हैं।

- हंसराज रहबर

[ अफ्रीका की लोक-कथा ]

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