Warning: session_start(): open(/tmp/sess_bde33a22195751f679c2aa384ef689af, O_RDWR) failed: No such file or directory (2) in /home/bharatdarshanco/public_html/article_details.php on line 2

Warning: session_start(): Failed to read session data: files (path: /tmp) in /home/bharatdarshanco/public_html/article_details.php on line 2
 धीरे-धीरे प्यार बन गई | Hindi Geet by Narmada Prasad Khare
हिंदी जाननेवाला व्यक्ति देश के किसी कोने में जाकर अपना काम चला लेता है। - देवव्रत शास्त्री।

धीरे-धीरे प्यार बन गई (काव्य)

Print this

Author: नर्मदा प्रसाद खरे

जाने कब की देखा-देखी, धीरे-धीरे प्यार बन गई
लहर-लहर में चाँद हँसा तो लहर-लहर गलहार बन गई
स्वप्न संजोती सी वे आँखें, कुछ बोलीं, कुछ बोल न पायीं
मन-मधुकर की कोमल पाखें, कुछ खोली, कुछ खोल न पायीं
एक दिवस मुसकान-दूत जब प्रणय पत्रिका लेकर आया
ज्ञात नहीं, तब उस क्षण मैंने, क्या-क्या खोया, क्या-क्या पाया
क्षण भर की मुसकान तुम्हारी, जीवन का आधार बन गई।

अलकों के श्यामल मेघों में, शशि-मुख का छिप-छिप मुसकाना
कभी उलझना, कभी सुलझना, कभी स्वयं पर बलि-बलि जाना
मन चकोर ने अपलक देखा, अलक-पलक का रास रंगीला
एक दिवस बरबस आँखों ने किया अचानक आँचल गीला
नयनों की बरसात तुम्हारी, मेरे लिए बहार बन गई।

तुमने रूप संवारा अपना, मधुऋतु का शृंगार हो गया
तुमने वेश संवारा अपना, इन्द्रधनुष साकार हो गया
तुमने ज्यों ही गीत उठाया, कोकिल स्वर चुपचाप सो गया
अधरों के हिलते ही जैसे प्राणों का अभिसार हो गया
प्राण तुम्हारी गीत मधुरिमा दिशि-दिशि का विस्तार बन गई।

तुमने अपनी मांग भरी तो ऊषा को मुसकान मिल गई
प्राणों को, प्राणों की जैसे, युग-युग की पहचान मिल गई
तुमने तनिक निहारा हँस कर, फूल-फूल पर हास झर गया
कली-कली के नयन खुल गए, कन-कन में उल्लास भर गया
बहुत दिनों की दूरी पल में, अरे मिल त्यौहार बन गई।

तुमने हँस कर बाह गही तो जीवन को विश्वास मिल गया
गमक उठी जीवन फुलवारी, प्राणों को मधुमास मिल गया
तम को छोड़, दूर मंजिल पर, आशाओं के दीप जल उठे
साँस-साँस सोपान बन गई, स्वयं लक्ष्य के द्वार खुल उठे
सिन्धु बिन्दु बन गया सहज ही,लहर-लहर पतवार बन गई।

-नर्मदा प्रसाद खरे
[1964 में आकाशवाणी, भोपाल से प्रसारित]

Back

 
Post Comment
 
 
 
 
 

सब्स्क्रिप्शन

सर्वेक्षण

भारत-दर्शन का नया रूप-रंग आपको कैसा लगा?

अच्छा लगा
अच्छा नही लगा
पता नहीं
आप किस देश से हैं?

यहाँ क्लिक करके परिणाम देखें

इस अंक में

 

इस अंक की समग्र सामग्री पढ़ें

 

 

सम्पर्क करें

आपका नाम
ई-मेल
संदेश