हिंदी चिरकाल से ऐसी भाषा रही है जिसने मात्र विदेशी होने के कारण किसी शब्द का बहिष्कार नहीं किया। - राजेंद्रप्रसाद।

राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 के आलोक में स्कूली शिक्षा: भारतीय ज्ञान परंपरा की प्रासंगिकता  (विविध)

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Author: प्रो. सरोज शर्मा

Prof Saroj Sharma

भारत की ज्ञान परंपरा का इतिहास अत्यंत गौरवपूर्ण है। विश्वगुरु के रूप में भारत की प्रतिष्ठा रही है। इस राष्ट्र की प्रतिष्ठा के मूल में यहाँ की संस्कृति तथा एकता और इस देश की बृहद  ज्ञान परंपरा के स्रोत- वेद, वेदांग, पुराण, धर्मशास्त्र, योग, आयुर्वेद, कला, कृषि, पशुपालन तथा लोक साहित्य इत्यादि थे। उन्नति के शिखर पर कोई भी राष्ट्र तब पहुंचता है, जब वह अपने पूर्वाचार्यों द्वारा प्रदत्त ज्ञान परम्परा का अनुसरण करे, परंतु इसके विपरीत भारत ने कई कालखण्डों तक विदेशी आक्रांताओं के आक्रमण तथा उनके कठोर शासन की पराधीनता का सामना किया। इस प्रकार के क्रूर शासन के अंतर्गत इस राष्ट्र की महत्वपूर्ण विरासत गुरुकुल परम्परा के ध्वस्तीकरण किया गया । ब्रिटिश शासन में भारत को सर्वाधिक क्षति पहुंची क्योंकि इस काल में भारत की शिक्षा प्रणाली का  पूर्ण रूप से पाश्चात्यीकरण प्रारंभ हुआ।  भारत के नागरिकों में उनकी वास्तविक  ज्ञान परम्परा तथा सभ्यता के प्रति हीन विचारों के बीज का प्रत्यारोपण किया गया।  प्रत्येक भारतीय अपनी ज्ञान परंपरा के साथ ही तकनीक से युक्त शिक्षा को प्राप्त करे, इसी के क्रम में शिक्षा मंत्रालय, भारत सरकार के महत्त्वपूर्ण प्रयासों से 'राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020' का निर्माण हुआ है। इस शिक्षा नीति के आधारभूत सिद्धांत के बिन्दुओं में नैतिक, मानवीय तथा संवैधानिक मूल्यों सहित भारत की प्राचीन तथा वर्तमान संस्कृति व  ज्ञान परंपरा को शिक्षा में समाहित किया जाना चाहिए। 

प्राचीन समय में भारत ने ही विश्व को धर्म, अध्यात्म, योग, संगीत,आयुर्वेद, संस्कृति, सभ्यता आदि का ज्ञान दिया। किन्तु वर्तमान भारत का नागरिक अपने पारंपरिक एवं सांस्कृतिक मूल्यों की शिक्षा से अनभिज्ञ है। वह भारतीयता की जड़ों से कट चुका है। भारतीय जनमानस को दिग्भ्रमित करने वाली इस दशा के पीछे अनेक कारण हैं। परंतु एक प्रमुख कारण 'लॉर्ड मैकाले' का वह विवरण पत्र था, जिसके तहत मैकाले ने 'अधोगामी निस्पंदन का सिद्धांत' दिया। संस्कृत जैसी साहित्यिक भाषाओं की उपेक्षा कर अंग्रेजी के माध्यम से अध्यापन की सिफ़ारिश की गई। धीरे-धीरे मैकाले की इस दुष्प्रभावी  नीति ने भारतीय शिक्षा की जड़ों को नष्ट करने का कार्य किया। भारत  की शिक्षण संस्थाओं में अंग्रेजी माध्यम से शिक्षण प्रारंभ हुआ। अंग्रेजी माध्यम से सरकारी पत्राचार होने लगा। अंग्रेजी के मायाजाल  ने हिन्दी तथा भारत की क्षेत्रीय भाषाओं के प्रति भारत के नागरिकों में हीन भावना का प्रत्यारोपण किया जिसका दुष्परिणाम है कि आज भारत के नागरिकों के मन-मस्तिष्क में पश्चिमी सभ्यता अपना आधिपत्य स्थापित कर चुकी है। भौतिकतावादी पाश्चात्य संस्कृति के अंधानुकरण के कुप्रभाव से भारत में समाजिक तथा पारिवारिक विघटन हो रहे हैं। जिससे राष्ट्र के सामाजिक मापदण्ड प्रभावित हो रहे हैं नैतिक पतन के कारण बहुत सी असामाजिक घटनाएं घटित हो रही हैं। इस प्रकार की भयावह कलुषता को राष्ट्रीय युवा चेतना के जागरण से दूर किया जा सकता है। राष्ट्र भक्ति का अंतर्चेतना में अबाध प्रवाह उत्पन्न करने के लिए भारतीय ज्ञान परंपरा की शिक्षा द्वारा भारतीय युवाओं में नैतिक तथा सामाजिक मूल्यों का बीजारोपण कर उन्हें राष्ट्रतत्त्व बोध एवं राष्ट्र प्रेम की शिक्षा देने की आवश्यकता है। “राष्ट्रीय शिक्षा नीति - 2020” का निर्माण भी इसी परिप्रेक्ष्य में हुआ है।

भारत विविधता सम्पन्न राष्ट्र है। अतः इस देश में भावनात्मक संगठन, संवेदना  जैसे भावों को अक्षुण्ण रखने हेतु तथा यहाँ की सांस्कृतिक परम्पराओं को जीवंत रखने के लिए युवाओं का चरित्र निर्माण अत्यन्त आवश्यक है। 'राष्ट्रीय शिक्षा नीति- 2020' स्वतंत्र भारत की प्रथम शिक्षा नीति है जो प्राचीन भारतीय ज्ञान तथा  सांस्कृतिक मूल्यों के आधार पर निर्मित की गयी है। शिक्षा के माध्यम से छात्रों में साक्षरता एवं संख्याबोध जैसी केवल प्रारम्भिक क्षमता एवं उच्चस्तरीय संज्ञानात्मक क्षमता का ही विकास न हो अपितु नैतिक,सामाजिक तथा भावनात्मक स्तर पर भी व्यक्तित्व का विकास होना चाहिए। इसी सिद्धांत पर यह शिक्षा नीति आधारित है। भारतीय जड़ों तथा गौरव से बंधे रहने के लिए शिक्षण प्रणाली में जहां भी प्रासंगिक लगे वहाँ पर भारत की प्राचीन तथा आधुनिक सांस्कृतिक एवं  ज्ञान प्रणालियों तथा परम्पराओं को सम्मिलित कर उनसे प्रेरणा प्राप्त करें। यह भी इस शिक्षा नीति का मूलभूत सिद्धांत है। ज्ञान के परिदृश्य से जहां वैश्विक परिवर्तन तीव्र गति से हो रहा है, वहीं भारत के विकास के लिए समय की माँग के अनुरूप भारतीय शिक्षा में सुधार आवश्यक था। सभी को गुणवत्ता तथा समतामूलक शिक्षा प्राप्त हो तथा विद्यार्थियों का सर्वांगीण विकास हो एवं वह अपनी प्रतिभा को विकसित कर सकें,  इसी के तहत "राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020" में पिछले अकादमिक ढांचे में परिवर्तन करते हुए स्कूली शिक्षा के नवीन शैक्षणिक और पाठ्यक्रम ढांचे का सृजन हुआ है। वर्तमान समय में भारत की उच्चतर शिक्षा प्राणाली में अनेक समस्याएं हैं। इन समस्याओं से निपटने के लिए तथा शोध एवं नवाचार को बढ़ावा देने के लिए इस शिक्षा नीति के तहत उच्चतर शिक्षा में भी महत्वपूर्ण बदलाव किए गए हैं। बहुभाषी राष्ट्र भारत की भाषाई विविधता (मातृभाषा/स्थानीय तथा क्षेत्रीय भाषाओं) के संरक्षण तथा उनके पुनर्स्थापन जैसे विचारणीय मुद्दों पर ध्यान केन्द्रित करते हुए इस शिक्षा नीति में त्रिभाषा सूत्र को शिक्षा में लागू किए जाने का उल्लेख है।

भारत में राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 शिक्षा प्रणाली में देश की समृद्ध ज्ञान परंपराओं के एकीकरण और पुनरुद्धार पर जोर देती है। स्कूली शिक्षा में भारतीय ज्ञान परंपराओं का समावेश 'राष्ट्रीय शिक्षा नीति- 2020' में उल्लिखित कई प्रमुख उद्देश्यों के अनुरूप है। स्कूली शिक्षा में भारतीय ज्ञान परंपरा के एकीकरण की आवश्यकता पर प्रकाश डालने वाले अनेक बिन्दु महत्त्वपूर्ण हैं। भारतीय ज्ञान परंपराओं को शामिल करने से छात्रों को अपनी सांस्कृतिक पहचान और विरासत से जुड़ने में मदद मिलती है। यह भारत के समृद्ध इतिहास, दर्शन और विभिन्न क्षेत्रों में योगदान के लिए गर्व और प्रशंसा की भावना को बढ़ावा देता है। शिक्षा के लिए समग्र और बहु-विषयक दृष्टिकोण पर जोर देती है। भारतीय ज्ञान परंपराओं का एकीकरण एक व्यापक परिप्रेक्ष्य प्रदान करता है, जिसमें न केवल वैज्ञानिक और तकनीकी ज्ञान बल्कि दार्शनिक, कलात्मक और सांस्कृतिक आयाम भी शामिल हैं। भारतीय ज्ञान परंपराएँ अक्सर उदात्त और नैतिक मूल्यों पर जोर देती हैं। इन शिक्षाओं को पाठ्यक्रम में शामिल करने से छात्रों के समग्र विकास में योगदान मिलता है, उनके नैतिक मार्गदर्शन और सामाजिक जिम्मेदारी की भावना का पोषण होता है। एनईपी 2020 क्षेत्रीय भाषाओं के संरक्षण और संवर्धन की वकालत भी करती है। भारतीय ज्ञान परंपराओं को विभिन्न क्षेत्रीय भाषाओं में संरक्षित किया जाता है, जिससे भाषाई विविधता और मातृभाषाओं के महत्व को सुदृढ़ करने का अवसर मिलता है। भारतीय ज्ञान परंपराओं को एकीकृत करने का अर्थ विशिष्टता नहीं है; बल्कि, यह एक वैश्विक परिप्रेक्ष्य प्रदान करता है। भारतीय दर्शन, गणित, खगोल विज्ञान और चिकित्सा के कई सिद्धांतों की सार्वभौमिक प्रासंगिकता है, जो एक सर्वांगीण शिक्षा में योगदान करते हैं। पारंपरिक भारतीय ज्ञान में पर्यावरणीय नैतिकता और प्रथाएं शामिल होती हैं। स्कूलों में इन सिद्धांतों को पढ़ाना पर्यावरण जागरूकता और जिम्मेदार नागरिकता पर 'राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 के जोर के अनुरूप है। भारतीय ज्ञान परंपराएँ नवीनता और रचनात्मकता का स्रोत हैं। इन परंपराओं के संपर्क में आने से छात्रों को आलोचनात्मक, रचनात्मक रूप से सोचने और समस्या-समाधान की मानसिकता विकसित करने के लिए प्रेरित किया जा सकता है। आयुर्वेद और योग जैसी पारंपरिक भारतीय प्रणालियाँ स्वास्थ्य और कल्याण में बहुमूल्य अंतर्दृष्टि प्रदान करती हैं। इन शिक्षाओं को एकीकृत करना स्वस्थ जीवन शैली और समग्र कल्याण को बढ़ावा देने पर 'राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 के लक्ष्य के अनुरूप है। भारतीय ज्ञान परंपराएँ विभिन्न विषयों के अंतर्संबंध पर जोर देती हैं। इन परंपराओं को एकीकृत करने से सीखने के लिए एक अंतःविषय दृष्टिकोण को बढ़ावा मिलता है, जो एक लचीले और एकीकृत पाठ्यक्रम के लिए 'राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020के दृष्टिकोण के साथ समावेशित होता है। पारंपरिक भारतीय ज्ञान जांच और आलोचनात्मक सोच की भावना को प्रोत्साहित करता है। इन परंपराओं को स्कूली शिक्षा में एकीकृत करने से अनुसंधान-उन्मुख शिक्षा, जिज्ञासा और प्रश्न पूछने वाली मानसिकता को बढ़ावा मिलता है। भारतीय ज्ञान परंपराएँ सामाजिक सद्भाव, सहिष्णुता और समावेशिता के सिद्धांतों को बढ़ावा देती हैं। इन मूल्यों को एकीकृत करने से विविधता में एकता की भावना को बढ़ावा मिलता है और छात्रों को जिम्मेदार नागरिकता के लिए तैयार किया जाता है।

अंत में, विद्यालयी शिक्षा में भारतीय ज्ञान परंपराओं का एकीकरण राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 के सिद्धांतों के अनुरूप है, जो भारत में छात्रों के लिए अधिक समावेशी, समग्र और सांस्कृतिक रूप से समृद्ध सीखने के अनुभव में योगदान देता है।

प्रो. सरोज शर्मा 
अध्यक्ष, राष्ट्रीय मुक्त विद्यालयी शिक्षा संस्थान नोएडा (उ.प्र.), भारत

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