जब हम अपना जीवन, जननी हिंदी, मातृभाषा हिंदी के लिये समर्पण कर दे तब हम किसी के प्रेमी कहे जा सकते हैं। - सेठ गोविंददास।

दिल के मचल रहे मेरे (काव्य)

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Author: निज़ाम-फतेहपुरी

दिल के मचल रहे मेरे  अरमान क्या करें
हम ख़ुद से हो गए  हैं  परेशान क्या करें

कश्ती हमारी टूटी  है  दरिया है बाढ़ पर
मझधार में ही आ गया तूफ़ान क्या करें

दामन में लग न जाए कहीं डर है दाग का
पीछे पड़ा हुआ  है  ये  शैतान क्या करें

ज़ालिम को इतनी छूट भी अच्छी नहीं ख़ुदा
शहरों को होते देखा  है वीरान क्या करें

झूठी है ज़िंदगी  यहाँ  मरना सभी को है
सब जान कर भी बन गए अनजान क्या करें

दौलत कमा के हमने महल भी बनाये हैं
जाना है खाली हाथ ये सामान क्या करें

कल क्या "निज़ाम" होगा किसीको ख़बर नहीं
फिर भी है भूला मौत को इंसान क्या करें

-निज़ाम-फतेहपुरी
 ग्राम व पोस्ट मदोकीपुर
 ज़िला- फतेहपुर (उत्तर प्रदेश) भारत
 ईमेल :  babukhan3716@gmail.com
 6394332921
 9198120525

 

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