जब हम अपना जीवन, जननी हिंदी, मातृभाषा हिंदी के लिये समर्पण कर दे तब हम किसी के प्रेमी कहे जा सकते हैं। - सेठ गोविंददास।

पानी (कथा-कहानी)

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Author: सुनील कुमार शर्मा

हमारे खाली पड़े हुए प्लाट में पड़ोसी की दीवार के नीचे से रिसकर इतना पानी आ जाता था कि प्लाट में कीचड़ ही कीचड़ हो जाता था। हमने पड़ोसी से कई बार शिकायत की; पर उसके कान पर जूं तक ना रेंगी।

एक दिन श्रीमती जी ने सुझाव दिया, "हमारे प्लाट में पानी तो अपने-आप आ ही जाता है... क्यों ना हम कुछ सब्ज़ी के बीज बो द?  घर की हरी सब्ज़ी हो जाएगी!"

पत्नी का प्रस्ताव मुझे पसंद आया। मैंने उस प्लाट में छोटी-छोटी क्यारियाँ बनाकर, धनियाँ, पालक, मेथी इत्यादि के बीज बो दिए। बीज अंकुरित होकर, पौधे बढ़ने लगे। पर यह क्या?  अचानक पड़ोसी के घर से पानी आना बंद हो गया।

- सुनील कुमार शर्मा
  ईमेल : sharmasunilkumar727@gmail.com

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