जब हम अपना जीवन, जननी हिंदी, मातृभाषा हिंदी के लिये समर्पण कर दे तब हम किसी के प्रेमी कहे जा सकते हैं। - सेठ गोविंददास।

श्रद्धांजलि (काव्य)

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Author: मैथिलीशरण गुप्त

अरे राम! कैसे हम झेलें,
अपनी लज्जा उसका शोक।
गया हमारे ही पापों से;
अपना राष्ट्र-पिता परलोक!

-मैथिलीशरण गुप्त

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उपरोक्त का एक निम्न संस्करण भी उपलब्ध है--

हाय राम! कैसे झेलेंगे अपनी लज्जा, उसका शोक
गया हमारे ही पापों से अपना राष्ट्रपिता परलोक

 

-मैथिलीशरण गुप्त

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