हिंदी भारतीय संस्कृति की आत्मा है। - कमलापति त्रिपाठी।

प्यारे बापू | बाल कविता (काव्य)

Print this

Author: सियाराम शरण गुप्त

हम सब के थे प्यारे बापू
सारे जग से न्यारे बापू

जगमग-जगमग तारे बापू
भारत के उजियारे बापू

लगते तो थे दुबले बापू
थे ताक़त के पुतले बापू

नहीं कभी डरते थे बापू
जो कहते करते थे बापू

सदा सत्य अपनाते बापू
सबको गले लगाते बापू

हम हैं एक सिखाते बापू
सच्ची राह दिखाते बापू

चरखा खादी लाए बापू
हैं आज़ादी लाए बापू

कभी न हिम्मत हारे बापू
आँखों के थे तारे बापू

-सियाराम शरण गुप्त

Back

 
Post Comment
 
 
 
 
 

सब्स्क्रिप्शन

सर्वेक्षण

भारत-दर्शन का नया रूप-रंग आपको कैसा लगा?

अच्छा लगा
अच्छा नही लगा
पता नहीं
आप किस देश से हैं?

यहाँ क्लिक करके परिणाम देखें

इस अंक में

 

इस अंक की समग्र सामग्री पढ़ें

 

 

सम्पर्क करें

आपका नाम
ई-मेल
संदेश