Warning: session_start(): open(/tmp/sess_55f36a02a1a094517b459fac2370af0a, O_RDWR) failed: No such file or directory (2) in /home/bharatdarshanco/public_html/article_details.php on line 2

Warning: session_start(): Failed to read session data: files (path: /tmp) in /home/bharatdarshanco/public_html/article_details.php on line 2
 ऊबड़खाबड़ रास्ता | लघुकथा
हिंदी जाननेवाला व्यक्ति देश के किसी कोने में जाकर अपना काम चला लेता है। - देवव्रत शास्त्री।

ऊबड़खाबड़ रास्ता | लघुकथा (कथा-कहानी)

Print this

Author: बैकुंठनाथ मेहरोत्रा

ऊबड़खाबड़ रास्ता। उस पर एक इंसान बढ़ता चला जा रहा था।

चलते-चलते वह झुँझला उठा। सिर पकड़ कर, किनारे पड़े एक शिलाखंड पर सुस्ताने के लिए, बैठते हुए, अत्यन्त खीझ भरे स्वर में सामने पड़े हुए उस लम्बे रास्ते से बोला, "तुम इतने ऊबड़खाबड़ क्यों हो, रास्ते?"

रास्ते ने उस की शिथिलता पर मुस्कराते हुए उत्तर दिया,"मेरा काम तो मात्र पथ-प्रदर्शन करना है...मुझे संवारकर रखना तो तुम्हारा काम है...जो जिस दशा में रखता है वैसे ही रहता हूँ...इस में मेरा क्या दोष है!"

रास्ते की बात ने इंसान को निरुत्तर कर दिया।

-बैकुंठनाथ मेहरोत्रा

 

Back

 
Post Comment
 
 
 
 
 

सब्स्क्रिप्शन

सर्वेक्षण

भारत-दर्शन का नया रूप-रंग आपको कैसा लगा?

अच्छा लगा
अच्छा नही लगा
पता नहीं
आप किस देश से हैं?

यहाँ क्लिक करके परिणाम देखें

इस अंक में

 

इस अंक की समग्र सामग्री पढ़ें

 

 

सम्पर्क करें

आपका नाम
ई-मेल
संदेश