जब हम अपना जीवन, जननी हिंदी, मातृभाषा हिंदी के लिये समर्पण कर दे तब हम किसी के प्रेमी कहे जा सकते हैं। - सेठ गोविंददास।

मोबाइल में गुम बचपन  (काव्य)

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Author: डॉ दीपिका

Kids Playing on Mobile

सच ही तो है,
मोबाइल ने गुमाया बचपन।
क्या खूब थी, वो सुबह
सूर्य की लालिमा और दूर तलक बच्चों की सभा।
क्या खूब थी पेड़ो की छाँव,
जब पर्चियों के खेल थे
गली में बच्चों के भी मेल थे।
क्या खूब थी वो शाम,
पिठू, बैटबॉल, बैडमिंटन के नाम।
सब लुप्त कर दिया
इस मोबाइल ने,
ले लिया बचपन
अपने 'स्टाइल' में।

--डॉ दीपिका
ई-मेल: deep2581@yahoo.com

 

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