जिस देश को अपनी भाषा और अपने साहित्य के गौरव का अनुभव नहीं है, वह उन्नत नहीं हो सकता। - देशरत्न डॉ. राजेन्द्रप्रसाद।

बेटी (काव्य)

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Author: अंकिता वर्मा

बेटी हूँ मैं भूल नहीं
किसी के पैरों की धूल नहीं,
वह गला नहीं मैं
जिसे पैदा होते ही घोंट दो।
कोयला नहीं मैं
जिसे बड़ा होते ही,
चूल्हे-चौके में झोंक दो।
गुड़िया नहीं मैं
जिसे खेल कर फेंक दो।
चिड़िया नहीं मैं
जिसे पिजरे में बाँध दो।
कोई सौदा नहीं मैं
जिसे दहेज से तौल दो।
कोई प्यादा नहीं मैं
जिसे शतरंज में छोड़ दो।
बेटी हूँ मैं भूल नहीं
किसी के पैरों की धूल नहीं।

- अंकिता वर्मा, भारत
[ कक्षा 10 की छात्रा ]

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