Warning: session_start(): open(/tmp/sess_6e3e8dbc563945e54aa671d2ac58b0b1, O_RDWR) failed: No such file or directory (2) in /home/bharatdarshanco/public_html/article_details.php on line 2

Warning: session_start(): Failed to read session data: files (path: /tmp) in /home/bharatdarshanco/public_html/article_details.php on line 2
 प्रभुद‌याल‌ श्रीवास्त‌व‌ के चार बाल गीत | Bal Geet by Prabhudayal Shrivastava
हिंदी जाननेवाला व्यक्ति देश के किसी कोने में जाकर अपना काम चला लेता है। - देवव्रत शास्त्री।

चार बाल गीत  (बाल-साहित्य )

Print this

Author: प्रभुद‌याल‌ श्रीवास्त‌व‌

यात्रा करो टिकिट लेकर

टाँगे झोला कंधे पर
आया यहाँ टिकिट चेकर।
अब उनकी शामत आई
जो न चढ़े टिकिट लेकर।
उन्हें लगेगा जुर्माना
या निपटें कुछ ले-देकर।
बचना है झंझट से तो
यात्रा करो टिकिट् लेकर।

--प्रभुद‌याल‌ श्रीवास्त‌व‌



[2]

घर अपना है

यह घर देखो अपना है
जैसे सुंदर सपना है।

इसमें बड़ा बचीचा है
कल अम्मा ने सींचा है।

कितने प्यारे फूल खिले
चले हवा तो हिले डुले।

मह मह बेला मह्के
इस सुगंध से मन बहके।

--प्रभुद‌याल‌ श्रीवास्त‌व‌



[3]

एक रुपये का सिक्का

एक रुपये का सिक्का देखो
इस पर है क्या लिक्खा देखो।

इस पर रुपये एक लिखा
अरे तुम्हें क्या नहीं पता?

इसमे लिक्खा भारत है
कितनी सही इबारत है।

तीन शेर का चिन्ह बना
भारत का है जो अपना।

--प्रभुद‌याल‌ श्रीवास्त‌व‌



[4]

समय बड़ा अनमोल

समय बड़ा अनमोल है
समझो इसका मोल|
व्यर्थ गँवाया किस तरह
देखो हृदय टटोल।

दो घंटे दिन में यदि
सोते हो हर रोज|
व्यर्थ किये दस साल में
दिन कितने ये खोज?

गुणा भाग जब किया तो
निकला यह परिणाम|
किये तीन सौ दिवस यूँ
व्यर्थ गये बेकाम।

--प्रभुद‌याल‌ श्रीवास्त‌व‌
ई-मेल: pdayal_shrivastava@yahoo.com

 

Back

 
Post Comment
 
 
 
 
 

सब्स्क्रिप्शन

सर्वेक्षण

भारत-दर्शन का नया रूप-रंग आपको कैसा लगा?

अच्छा लगा
अच्छा नही लगा
पता नहीं
आप किस देश से हैं?

यहाँ क्लिक करके परिणाम देखें

इस अंक में

 

इस अंक की समग्र सामग्री पढ़ें

 

 

सम्पर्क करें

आपका नाम
ई-मेल
संदेश