Warning: session_start(): open(/tmp/sess_385d9139d79de8203ed4a1f43738e4b3, O_RDWR) failed: No such file or directory (2) in /home/bharatdarshanco/public_html/article_details.php on line 2

Warning: session_start(): Failed to read session data: files (path: /tmp) in /home/bharatdarshanco/public_html/article_details.php on line 2
 राजेश ललित की दो क्षणिकाएँ | Kshanikayein by Rajesh Lalit
भारत की सारी प्रांतीय भाषाओं का दर्जा समान है। - रविशंकर शुक्ल।

राजेश ’ललित’ की दो क्षणिकाएँ  (काव्य)

Print this

Author: राजेश ’ललित’

ख़्वाब

थे हमारे भी !
कुछ ख़्वाब,
पर नींद नहीं आई;
पलकों से बाहर ही
रहे ख़्वाब !
मचलते हुए
जाना है हमको भी
पलकों के पीछे।

-राजेश 'ललित'
ई-मेल: fearlessr56@gmail.com

 

#

आज नहीं

जाना था हमको भी
उसी महफ़िल में--
तन्हा थे जो आये भी;
नहीं गये फिर हम भी:
तन्हाईयों की भीड़ में,
कि खो न जाएँ कहीं,
सोचा, आज नहीं फिर कभी।

--राजेश 'ललित'
 ई-मेल: fearlessr56@gmail.com

 

Back

 
Post Comment
 
 
 
 
 

सब्स्क्रिप्शन

सर्वेक्षण

भारत-दर्शन का नया रूप-रंग आपको कैसा लगा?

अच्छा लगा
अच्छा नही लगा
पता नहीं
आप किस देश से हैं?

यहाँ क्लिक करके परिणाम देखें

इस अंक में

 

इस अंक की समग्र सामग्री पढ़ें

 

 

सम्पर्क करें

आपका नाम
ई-मेल
संदेश