जिस देश को अपनी भाषा और अपने साहित्य के गौरव का अनुभव नहीं है, वह उन्नत नहीं हो सकता। - देशरत्न डॉ. राजेन्द्रप्रसाद।

भारत वंदना  (काव्य)

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Author: व्यग्र पाण्डे

वंदनीय भारत ।
अभिनंदनीय भारत ।।

उत्तर में हिमालय
तीर्थों का है जो आगर
दक्षिण चरण पखारे
पवित्र हिन्दू-सागर
अटक से कटक तक
भरी प्रेम गागर
तर्पणीय भारत ।
प्रातः स्मरणीय भारत ।।

ॠषियों की तपोभूमि
वीरों का जो खजाना
हुए राम-कृष्ण अवतरित
रहा देवों का आना-जाना
प्रकृति हरी-भरी जहाँ
गाती नदी तराना
पूजनीय भारत ।
अतिशोभनीय भारत ।।

वेदों का ज्ञान जिसमें
भरा उन्नत विज्ञान जिसमें
पुराणों की जन्मदाता
स्मृतियों का पान जिसमें
मुनि व्यास की धरा जो
हुआ तुलसी का जन्म जिसमें
धारणीय भारत ।
पालनीय भारत ।।

राणा की जो धरा है
बलिदानी परंपरा है
शिवाजी का सा कौशल
कदम-कदम भरा है
शहीदों की शहादत से
शोभित वसुंधरा है
प्रदर्शनीय भारत ।
अनुकरणीय भारत ।।

भिन्न-भिन्न भाषा
भिन्न-भिन्न धर्म
भिन्न-भिन्न पहनावा
भिन्न-भिन्न कर्म
‘अनेकता में एकता'
है जहाँ का मर्म
प्रशंसनीय भारत ।
वर्णनीय भारत ।।

- व्यग्र पाण्डे
कर्मचारी कालोनी, गंगापुर सिटी
स.माधोपुर (राज.) 322201
मोबाइल नंबर-9549165579
ई-मेल: vishwambharvyagra@gmail.com

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