लेकर रेखा से कुछ बिन्दु, आओ रेखा नई बनाएँ।।
चलो कि वक्र-वक्र रेखा को, हम सब सीधी राह दिखाएँ ।।
तिर्यक तिर्यक से सम्बन्ध !
जीवन निरालम्ब अनुबन्ध !
विह्वल विकल से स्वप्न सँजोए,
श्रांति - परिधि परिबन्ध !!
चलो तलाशें सत् शिव-त्रिज्या, सुन्दर सा परिपथ अपनाएँ ।।
दीर्घवृत्तीय आस - विलास !
हर पल बहुकोणिक संत्रास !
काश ! कि हम छोटे कर पाते -
अपनी अभिलाषा के व्यास !!
चलो नियामक नए बना कर, हम नूतन निमेय सजाएँ ।।
दृष्टि की जीवा : महदाकाश !
केन्द्र बने प्रज्ञा - विश्वास !
काश ! लक्ष्य आधार बन सके,
चेतन-वृत्त का चरम विकास !!
काश ! कि हम सब चतुर्भुजी, वैश्वानर बन कर दिखलाएँ !!
चलो कि वक्र-वक्र रेखा को, हम सब सीधी राह दिखाएँ ।।
लेकर रेखा से कुछ बिन्दु, आओ रेखा नई बनाएँ।।
- विजय रंजन
सम्पादक अवध-अर्चना
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