Warning: session_start(): open(/tmp/sess_e84dc80ba88ab8341233108a2f48c692, O_RDWR) failed: No such file or directory (2) in /home/bharatdarshanco/public_html/article_details.php on line 2

Warning: session_start(): Failed to read session data: files (path: /tmp) in /home/bharatdarshanco/public_html/article_details.php on line 2
 दुर्दिन | Poem by Alexander Pushkin
भारत की सारी प्रांतीय भाषाओं का दर्जा समान है। - रविशंकर शुक्ल।

दुर्दिन  (काव्य)

Print this

Author: अलेक्सांद्र पूश्किन

स्वप्न मिले मिट्टी में कब के,
और हौसले बैठे हार,
आग बची है केवल अब तो
फूँक हृदय जो करती क्षार।

भाग्य कुटिल के तूफानों में
उजड़ा मेरा मधुर बसंत,
हूँ बिसूरता बैठ अकेला
आ पहुँचा क्या मेरा अंत।

शीत वायु के अंतिम झोंके
का सहकर मानो अभिशाप,
एक अकेली नग्न डाल पर
पत्ता एक रहा हो काँप।

-अलेक्सांद्र पूश्किन (Alexander Pushkin)
 अनुवाद: हरिवंशराय बच्चन

 

Back

 
Post Comment
 
 
 
 
 

सब्स्क्रिप्शन

सर्वेक्षण

भारत-दर्शन का नया रूप-रंग आपको कैसा लगा?

अच्छा लगा
अच्छा नही लगा
पता नहीं
आप किस देश से हैं?

यहाँ क्लिक करके परिणाम देखें

इस अंक में

 

इस अंक की समग्र सामग्री पढ़ें

 

 

सम्पर्क करें

आपका नाम
ई-मेल
संदेश