जिस देश को अपनी भाषा और अपने साहित्य के गौरव का अनुभव नहीं है, वह उन्नत नहीं हो सकता। - देशरत्न डॉ. राजेन्द्रप्रसाद।

कालोनारांग - मरघट में होने वाली नृत्य नाटिका (विविध)

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Author: प्रीता व्यास

इंडोनेशिया के बाली द्वीप को कौन है जो नहीं जानता! अपने समुद्र - तटों के लिए, हिंदू मंदिरों के लिए जाना जाता है अमूमन बाली, लेकिन बाली बस इतना ही नहीं है, बहुत समृद्ध है इसकी संस्कृति।

बाली वासियों का सांस्कृतिक जीवन दोनों ही तत्वों को स्वीकारता है- अच्छाई और बुराई, अँधेरा और उजाला, उत्थान और पतन, बुरी आत्माएं और अच्छी आत्माएं। उनका मानना है कि जीवन में तारतम्य बनाये रखने के लिए दोनों ही पक्षों का अपना महत्व है। यही वजह है कि जितना महत्व बाली के पारम्परिक जीवन में देवी का है उतना ही लेयाक (चुड़ैल) का।

आइये,आपको भी ले चलते हैं दिखाने। मध्य रात्रि का सन्नाटा, सुगबुगाते दिलों को थामे दर्शक। पुरा दालेम ((मृतकों का मंदिर) के बाहर बरगद की सघन शाखाओं तले कालोनारंग की डरावनी आकृति और झुरझुरी पैदा करने वाली आवाज़। बूढी-सी चुड़ैल, हाथों में छड़ी, कंधे पर झूलता शाल। कभी उसके पैर हवा में उछलते हैं, कभी वो ज़मीन पर गोल चक्कर लगाती है। असर ऐसा कि बच्चे दर्शक तो कई बार डर कर आँखें बंद कर लेते या अपनी इबू (मां) या आया (पिता) की गोद में दुबक जाते।

Coloranga Natika

कालोनारंग बाली की प्रसिद्ध चुड़ैल है, इसका अपना इतिहास है, अपनी कथा है। कालोनारंग का चरित्र केवल उन्हें ही नहीं लुभाता जो काला जादू में विश्वास करते हैं बल्कि ये तो सभी बाली वासियों को लुभाता है। इस जैसी कोई दूसरी नृत्य नाटिका नहीं है जिसमें 'लेयाक' हो, जो रहस्यात्मकता लिए हो और जिसकी कोई ऐतिहासिक पृष्ठ भूमि हो।

अमूमन यह नृत्य नाटिका रात गहराने पर ही मंचित होती है और मध्य रात्रि के बाद अपने चरम पर होती है। यह वह समय होता है जब माना जाता है कि बुरी शक्तियां प्रभावी होती हैं। इसका मंचन मरघट के समीप, मुक्ताकाश के नीचे होता है और पुरा दालेम (मृतकों का मंदिर) के बाहर घने बरगद के नीचे भी। वैसे अब दर्शकों की सुविधा के लिए, पर्यटकों के लिए, इसका मंचन पांच सितारा होटलों में भी किया जाता है लेकिन इसका असली आनंद तभी मिलता है जब इसे इसकी मूल पृष्ठभूमि में देखा जाए।

कालोनारंग की कहानी एक ऐतिहासिक घटना पर आधारित है, जिसे बाद में नृत्य नाटिका के रूप में प्रस्तुत किया जाने लगा। कहते हैं कि ये घटना 11 वीं शताब्दी की है। उस समय जावा में ऐरलांगा का शासन था। ऐरलांगा की मां महेंद्रादात्ता जावा की राजकुमारी थी और उसके पिता दार्मोदयाना बाली के शासक।

Coloranga

बाली के 'लोन्तार दुरगा पुराना तात्वा' (दुर्गा पुराण) में इस बात का उल्लेख है कि राजा दार्मोदयाना ने महेंद्रादात्ता को धोखा दिया और कई रखैलें रखीं, इसलिए महेंद्रादात्ता चुड़ैल बन गई।

दुखी महेंद्रादात्ता, बहातारी दुरगा (बुराई की देवी) के पास गई और उससे काला जादू सिखाने का अनुरोध किया ताकि वह अपने पति की रखैलों को मार सके। महेंद्रादात्ता चुड़ैल बन गई और अपने संगी- साथियों (भूत व चुड़ैल) के साथ कहर बन कर लौटी। पूर्वी जावा में उसने अनेक बीमारियां फैला दीं। मृत्यु तांडव कर उठी। अपनी जादुई शक्ति को बनाये रखने के लिए वह मरे हुए बच्चों का इस्तेमाल करती थी।

राजा एरलंगा ने उसे ख़त्म करना चाहा लेकिन कालोनारंग की जादुई ताकत के आगे विवश हो गया। राजा ने तब एक पवित्र व्यक्ति (साधु) ऐम्पु बहारादाह को भेजा। कालोनारंग नृत्य नाटिका में प्रायः यह अंतिम दृश्य ही मंचित किया जाता है जिसमें ऐम्पु बहारादाह उसे नष्ट करने का प्रयत्न करता है और कालोनारंग बचने का।

कुल मिलाकर कहानी यह कहती है कि अन्याय और ईष्या ही काले जादू के जनक हैं। बाली में पीढ़ी दर पीढ़ी यही विश्वास चला आ रहा है। वहां काला जादू करने वाले 'पेन्जीवा' कहलाते हैं और काले जादू का उपचार करने वाले 'पेनेनजेन'।

Coloranga

गांवों में तो लोग पेन्जीवा में न सिर्फ विश्वास करते हैं बल्कि उससे डरते भी हैं। कोई उससे दुश्मनी मोल नहीं लेता कि पता नहीं कौन सी बीमारी लाद दे। कहीं जान ही न चली जाए।

बाली के प्रसिद्ध समाज विज्ञानी प्रोफ़ेसर नगुराह बागुस का कहना है कि बाली की जनता कालोनारंग को मानती है। वह उनके धर्म की नहीं, विश्वास की उपज है। बालीवासियों का मानना है कि विपदाओं से उनकी रक्षा रांगदा (दैत्य) ही कर सकती है। महेन्द्रादात्ता ही अंत में रांगदा बन जाती है और लोगों को विपदाओं से बचाती है। वह औरांग तालिस्मान (वे लोग जो जादू-टोने से लोगों को बचाने का काम करते हैं) की सदा रक्षा करती है।

इंडोनेशिया के बड़े शहरों के नए बच्चों से पूछो कि कालोनारंग को जानते हो? तो प्रति प्रश्न मिलेगा कि कौन कालोनारंग? लेकिन गाँवों के बच्चे आज भी कालोनारंग को जानते हैं।

-प्रीता व्यास

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