जिस देश को अपनी भाषा और अपने साहित्य के गौरव का अनुभव नहीं है, वह उन्नत नहीं हो सकता। - देशरत्न डॉ. राजेन्द्रप्रसाद।

ये किसने भीड़ में (काव्य)

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Author: श्याम ‘निर्मम'

ये किसने भीड़ में लाकर अकेला छोड़ दिया
मेरा तमाम सफ़र हादसों से जोड़ दिया

बड़ी घुमाव भरी है सुरंग दूर तलक
वहाँ पे किसने मेरे रास्तों को मोड़ दिया

उदास झील-सा सोया हुआ था वक़्त मगर
जगा के नींद से किसने इसे झिंझोड़ दिया

बड़ा हसीन था ख्वाबों का आईना मेरा
किसी ने फेंक के पत्थर वो शीशा तोड़ दिया

ये क्या हुआ है शहर को, क्यूँ चुप हैं चौराहे
फलक ने दर्द की आवाज़ को निचोड़ दिया

हवा के बीच कटे पंख थरथराते हैं
ये किसने जिस्म कबूतर का यूं मरोड़ दिया

-श्याम ‘निर्मम

 

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