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 एक बार फिर...
हिंदी जाननेवाला व्यक्ति देश के किसी कोने में जाकर अपना काम चला लेता है। - देवव्रत शास्त्री।

एक बार फिर... (काव्य)

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Author: व्यग्र पाण्डे

वो
चला तो ठीक था
लोग कहते थे
इसमें
शक्ति है/बुद्धि है
और चातुर्य भी
ये जीत जायेगा
दौड़ अपनी,
पर क्या हुआ ?
गंतव्य से पहले ही
शायद
वो भटक गया
उसकी सब विशेषताएं
उड़ गई
सूखे पत्तों की तरह
या फिर
भूल गया वो
कि वह एक
विशेष कार्य को निकला था
वो अटक गया
राह की चकाचौंध में
और चटक गया
उसका लक्ष्य
शीशे की तरह...
दौड़ का समय
पूर्ण होने को है
अबकी बार
खरगोश सोया तो नहीं
अति आत्मविश्वास में
यहां वहां घूमता रहा
लगता है
एक बार फिर
कछु आ
जीत जायेगा
दौड़ अपनी ...

- व्यग्र पाण्डे
कर्मचारी कालोनी, गंगापुर सिटी, स.मा.(राज.) 322201
ई-मेल: vishwambharvyagra@gmail.com

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